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आनन्द प्रवचन : भाग ८
'पब्लियस सिरस' कहता है -
An angry man is again angry with himself when he returns to reason."
"क्रोधी मनुष्य एक बार दूसरे पर क्रोध करने पर फिर अपने पर क्रोध करता है । जबकि वह क्रोध के कारणों पर विचार करने के लिए लौटता है।"
मनुष्य का शत्रु अगर कोई है तो क्रोध है। क्योंकि इसे अपनाने वाले का ही यह शत्रु बन जाता है । जैसे साँप को कोई दूध पिलाता है, और अपने पास रखता है, परन्तु जरा-सी असावधानी होने पर साँप काट खाता है, यही हाल क्रोधरूपी सर्प का है, इसे पालने वाले को यह कहीं का नहीं रखता । बुरा हाल कर देता है। समाज में, राष्ट्र में क्रोधी सर्वत्र अप्रतिष्ठित हो जाता है, कोई उसे चाहता नहीं । क्रोध त्याज्य क्यों है ? इसका कारण बताते हुए एक विचारक कहते हैं
"वैरं विवर्धयति सख्यमपाकरोति रूपं विरूपयति निन्द्यमति तनोति ।। दौर्भाग्यमानयति शातयते च कीर्ति
रोषोऽत्र रोषसदृशो नहि शत्रुरस्ति ॥" इस जगत में क्रोध वैर बढ़ाता है, मित्रता को मिटाता है, रूप कुरूप बना देता है, निन्दनीय बुद्धि बढ़ा देता है, दौर्भाग्य लाता है और कीर्ति को नष्ट करता है । इसलिए क्रोध जैसा कोई शत्रु नहीं है । इसीलिए एक कवि ने कहा है
"क्रोध करना छोड़ दो, यह क्रोध दुर्गुण-खान है। पतन का है मार्ग, फिर होता नहीं उत्थान है ॥ भस्म होती है इसी में मनुज की सद्भावना । कृत्य और अकृत्य का फिर, हो न सकता ज्ञान है ॥१॥ रजक और महातपस्वी, तुल्य हो जाते जहाँ । देवता भी फिर वहाँ, पाता न कर पहचान है ॥२॥ 'पतलीकर' के तत्त्व को जो, जानता नहीं जंगली। अंगुली निज तोड़ता, कर क्रोध-मदिरापान है ॥३॥ चण्डकौशिक की कहानी, जगत में विख्यात है।
क्रोध के आवेश में, हुआ पतित महान् है ॥४॥ क्रोधी महाचण्डाल है।
लोग चण्डाल से घृणा करते हैं। प्राचीन काल में भी बड़े-बड़े तथाकथित साधक चण्डाल से घृणा करके दूर से बचकर चलते थे । परन्तु असली चण्डाल कौन है ? इसे बहुत ही कम लोग जानते हैं । असली चण्डाल है क्रोध, जिससे घृणा की जानी
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तर्ज-ध्यान धर अरिहंत का............।
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