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________________ २०२ आनन्द प्रवचन : भाग ८ रखते हैं । ग्राहक मेरी सत्यता पर विश्वास रखकर सीधे मेरी दूकान पर चले आते हैं, कम मुनाफा लेकर माल सस्ता और अच्छा देने के कारण धन चाहे कम मिलता हो, पर मेरी साख जमी हुई है । दूसरे ईमानदारी आदि धर्म से जो सुख-शान्ति यहाँ मिलती है, वह बेईमानी से कैसे मिल सकती है ? फिर बेईमानी आदि पाप से रात. दिन चिन्ता बढ़ जाती है, पर-लोक में भी स्वर्ग और उसके सुखादि नहीं मिल सकते। इस लोभ से मैं अनीति-अधर्म के मार्ग पर नहीं चलता, धर्म मार्ग पर ही चलता हूँ। यह जीवन भी धर्म दृढ़ता का प्रतीक नहीं है। तीसरे व्यक्ति से जब बेईमानी आदि करके मालामाल होने को या अधिक पूँजी संचित करने को कहा जाता है तो वह तपाक से कहा-'बेईमानी, चोरी आदि पापकर्म करने की बात में स्वप्न में भी नहीं सोच सकता। यह मेरे संस्कारों में भी नहीं है कि मैं किसी भी तरह से एकान्त में, वन में सोते-जागते, अकेले में भी इस तरह के पाप कर्म करूँ। ईमानदारी सत्य आदि धर्म पर सुदृढ़ रहना मेरे संस्कारों के ताने-बाने में गुंथ गया है। मेरे प्राण भले ही चले जाएँ मुझ पर भयंकर से भयंकर कष्ट और संकट भले ही आ जाएँ, मैं अपने धर्म से एक इंच भी विचलित नहीं हो सकता। बन्धुओं, इन में से पहला धर्म पर चलने वाला व्यक्ति भय प्रेरित है, दूसरा लोभ प्रेरित है और तीसरा संस्कार प्रेरित है। इनमें से दो के जीवन में धर्म की नींव कच्ची है, तीसरे की नींव सुदृढ़ है । वही सत्त्ववान है । दृढ़धर्मी है । सत्त्ववान यह या वह ? प्रश्न होता है कि सत्त्ववान में साहस तो होना ही चाहिए परिस्थितियों से जूझने की क्षमता भी अपेक्षित है, साथ ही बहादुरी भी, परन्तु क्या उसे सत्त्ववान कहा जा सकेगा जो व्यक्ति बहादुरी और साहस के साथ दूसरे पर हिंसक आक्रमण कर देता हो, प्रहार कर देता हो, तोड़फोड़, दंगा, लूटपाट, छीनाझपटी, हत्या आगजनी डाका, बलात्कार, ठगी, तस्करी, बेईमानी आदि करने में 'माहिर' हो ? साहस क्षमता, बहादुरी आदि गुण तो सत्त्ववान में होने उचित हैं, परन्तु इनके साथ यदि उसमें हत्या, लूटपाट, बलात्कार, आक्रमण, तस्करी आदि हिंसक कृत्य हैं, तो उसे हम सत्त्ववान नहीं कह सकते। सत्ववान में जो सत्त्व शब्द हैं, वह सात्त्विक दैवी गुणों का प्रतीक है, हत्या आदि का उसके साथ मेल ही नहीं बैठता । हत्या आदि दुर्गुण तामसी और आसुरी गुणों के प्रतीक हैं। सत्त्ववान में ये तामसी और आसुरी सम्पदा के दुर्गुण होंगे तो वह धर्म पर दृढ़ कैसे रहेगा ? उलटे वह तो हत्या चोरी, लूटपाट, बलात्कार आदि अधर्म के पन्थ पर दृढ़ होगा, धर्ममार्ग से तो सर्वथा भ्रष्ट एवं विचलित हो जायगा। इसलिए यह निश्चित समझ लेना चाहिए कि सत्त्ववान का साहस, क्षमता, शक्ति, बहादुरी आदि गुण हिंसा आदि के साथ तो दूषित हो जाते हैं और न हिंसा आदि के साथ सत्त्वगुण की संगति है । हिंसा आदि का सीधा सम्बन्ध तो तमोगुण के साथ है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004011
Book TitleAnand Pravachan Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1979
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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