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________________ सत्त्ववान् होते दृढ़धर्मी १६५ सुविधाओं की कामनाएँ संजोता रहता है, वचन से भी उसी सुविधावाद की प्रशंसा करता है, शरीर से भी वह सुख-सुविधा एवं भोगविलास में प्रवृत्त हो जाता है, उस पर संकट हावी हो जाते हैं, परिस्थितियां उस पर सवार हो जाती है । वह स्वयं उसी तरह सुखसुविधाओं की तरफ ढल जाता है, जैसे अनुकूल ढाल पाकर जलधारा या हवा पाकर आग की लपटें प्रबल हो जाती हैं । धर्म से जरा भी न डिगने वाला : सत्त्ववान् सत्त्यवान् पुरुष अपने धर्म से एक इंच भी विचलित नहीं होता, क्योंकि वह जानता है कि धर्म पर दृढ़ रहने से ही मनुष्य अपनी आत्मिक शक्तियों का विकास कर सकता है । उपदेशमाला में कहा है तव - नियम सुट्टियाणं कल्लाणं जीवियंपि मरणं पि । जीवंतज्जति गुणा, मया पुण सुगाई जंति ॥ ४४३ ॥ - तप-नियमरूप धर्म में स्थित जीवों का जीना और मरना दोनों ही अच्छे हैं । जीवित रह कर तो वे गुणों का अर्जन करते हैं, और मरने पर सद्गति को प्राप्त होते हैं । स्वराज्य-आन्दोलन के सिलसिले में एक बार महात्मा गाँधीजी और कस्तूरबा आजमगढ़ आए । वे वहाँ के प्रसिद्ध काँग्रेसी भाई के यहाँ ठहरे । वे जमींदार थे और अफीम खाते थे । बापू को जब मालूम हुआ कि मेरे मेजबान काँग्रेसी भाई अफीम खाते हैं, तो उन्होंने उन्हें समझाया । इस पर उन्होंने गाँधीजी के समक्ष यावज्जीवन अफीम न खाने का नियम ले लिया । बापू को उन्होंने वचन दिया कि वह अपने नियम पर दृढ़ रहेंगे । बापू और बा दोनों वहाँ से वर्धा पहुँचे। इधर उक्त काँग्रेसी भाई की तबियत एक दम बिगड़ी, इतनी बिगड़ी कि सारे शरीर और पेट में बेचैनी व पीड़ा होने लगी । उनकी पत्नी से यह न देखा गया, उसने थोड़ी-सी अफीम ले लेने का अनुरोध किया, परन्तु वह किसी तरह भी अपना नियम तोड़ने को तैयार न हुआ । आखिर उनकी पत्नी ने बापू को पत्र लिखा कि " आप मेरे पति देव का नियम तोड़ कर अफीम सेवन करने के लिए लिखिए । मुझे सुहाग-दान दीजिए, अन्यथा इनकी मरणासन्न हालत है" । बापू ने उस पत्र का उत्तर इस आशय का दिया - " बहन ! तुम्हारे पतिदेव ने जो नियम लिया है, उस पर दृढ़ रहते हुए यदि मृत्यु हो जाती है. तो इससे बढ़कर अच्छी बात कौन-सी होगी ? कायरों की तरह मरने की अपेक्षा धर्मपालन करते हुए वीर की तरह मरना अच्छा है । रही तुम्हारे सुहाग की बात; सो अफीम खा लेने से भी तुम्हारा सुहाग अचल नहीं रह सकेगा । मृत्यु तो जिस दिन निश्चित है, उस दिन आएगी ही । इसकी कोई गारंटी नहीं कि अफीम खा लेने से तुम्हारे पतिदेव मरेंगे नहीं। मैं तो सुहाग की अपेक्षा धर्म के फल को महत्वपूर्ण मानता हूँ । धर्म पर दृढ़ रहने से दोनों ही मिल सकते हैं ! फिर तुम धर्मपत्नी हो, इसलिए धर्म पर अपने पति को दृढ़ रखना तुम्हारा कर्तव्य है ।" पत्र पढ़ते ही बहन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004011
Book TitleAnand Pravachan Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1979
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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