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________________ साधु जीवन की कसौटी : समता १८५ से रोका और मौलवी साहब को बड़े सम्मान व प्रेम के साथ तीर्थयात्रा (हज) करने के लिए आगे जाने दिया। मौलवी साहब का हृदय भारत के मन्त्रियों की पर-धर्मसहिष्णुता और उदारता की नीति से प्रभावित हुआ। तीर्थयात्रा से लौटते समय फिर मौलवी साहब ने मन्त्री तेजपाल के पास रुककर विश्राम लिया। मन्त्री ने प्रेम से अतिथि सत्कार करके उनका हृदय जीत लिया। मौलवी ने अपने सुलतान के समक्ष भारतीय लोगों के परधर्म-सहिष्णु और उदार व्यवहार का बखान किया तो सुलतान ने भी प्रभावित होकर मन्त्री तेजपाल के प्रति श्रद्धा और आदर के साथ सन्धिपत्र भेजा और अनुरोध किया कि यह देश आपका है। हम आपके सामन्त हैं। हमें भी अपनी सेवा का अवसर देकर कभी अनुगृहीत कीजिए।" ____ महामन्त्री तेजपाल के धर्मसमभाव का कितना जबर्दस्त प्रभाव मौलवी और सुलतान पर पड़ा। इससे हम अनुमान कर सकते हैं कि धर्मसमभाव की समतानिष्ठ व्यक्ति के लिए कितनी आवश्यकता है। छत्रपति शिवाजी भी परधर्मसहिष्णु थे। उन्होंने कई जगह मुस्लिमों को अपने धर्मस्थान बनवाने के लिए मदद दी थी। दृष्टि-समभाव भी समतानिष्ठ जीवन में आवश्यक है। दृष्टि-समभाव का अर्थ है, दूसरों के दृष्टिकोण पर भी धैर्य एवं सहिष्णुतापूर्वक विचार करना, उन्होंने यह बात किस अपेक्षा से कही है ? तथा किस अपेक्षा तक यह बात यथार्थ है ? इस प्रकार निष्पक्ष एवं अनेकान्त दृष्टि से विचार करना दृष्टि समभाव है । आचार्य हेमचन्द्र और हरिभद्रसूरि में दृष्टि समभाव कूट-कूट कर भरा था। जब आचार्य हेमचन्द्र को कुमारपाल राजा ने विरोधियों के कहने से प्रभासपाटण स्थित महादेव मन्दिर के उत्सव पर आमन्त्रित किया, और हेमचन्द्राचार्य के पधारने पर उन्हें कहा गया-महादेव को प्रणाम करिए । वहाँ उन्होंने जैन-दृष्टि और शैव-दृष्टि का समन्वय करते हुए महादेव की स्तुतिपूर्वक नमस्कार किया यत्र तत्र समये योऽसि सोऽस्यभिधया मया तया । वीतदोषकलुषः स चेद् एक एव भगवन् ! नमोऽस्तुते ॥ जिस-जिस समय में जिस किसी नाम से जो कोई भी महापुरुष हुआ हो, अगर वह रागद्वेषादि दोषों से रहित है तो वह एक ही है, हे भगवन् ! आपको मेरा नमस्कार है। इसके पश्चात् श्रीहेमचन्द्राचार्य ने महादेवाष्टक बनाया, जिसमें महादेव का वास्तविक स्वरूप बताया गया है। इसी प्रकार मानतुंगाचार्य ने भी भक्तामर स्तोत्र में वीतराग प्रभु को ब्रह्मा, विष्णु, शंकर, पुरुषोत्तम आदि के रूप में भी बताया है। योगीश्वर श्रीआनन्दघनजी ने नमि जिन स्तवन में छहदर्शनों को जिनेश्वर प्रभु के अंग बताए हैं। १ महादेवं प्रणम ! Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004011
Book TitleAnand Pravachan Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1979
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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