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________________ साधु जीवन की कसौटी : समता १८३ पहुंचाया। तत्पश्चात् स्टीमर के कर्मचारियों को एक-एक लकड़ी का तख्ता दिया, ताकि वे तैरकर अपनी जान बचा लें। कैप्टन ने भी अपने लिए एक तख्ता रखा था, जब सब व्यक्ति स्टीमर से बाहर समुद्र में कूदकर तख्ते के सहारे चल पड़े तब कैप्टन समुद्र में कूदने ही वाला था कि अचानक एक लड़का दिखाई दिया, जो स्टीमर के एक कोने में बैठा था। उसे कैप्टन ने कहा तू अभी तक चुपचाप क्यों बैठा रहा ?" उसने कहा-मैं गरीब हूँ। मेरे पास टिकट के पैसे नहीं थे, इसीलिए मैं बिना टिकट चढ़ गया था।" समभावी कैप्टन ने अपने हिस्से का बचा हुआ एक तख्ता देते हुए कहा---"ले यह तख्ता ! इसके सहारे तैरकर समुद्र पार कर ले।" कैप्टन अपने निराधार स्त्री बच्चों की परवाह किये बिना ही अपने हिस्से का तख्ता उस लड़के को दे चुका था, इसलिए अब उसके पास प्राण बचाने का कोई साधन नहीं था। थोड़ी ही देर में स्टीमर में पानी भर गया, कैप्टन ने सन्तोषपूर्वक जल-समाधि ले ली। इसे कहते हैं-व्यक्ति समभाव ! जिस व्यक्ति के जीवन में यह समभाव आ जाता है, वह अपने प्राणों या अभीष्ट पदार्थों की परवाह नहीं करता। इसीलिए भगवद्गीता में समत्वबुद्धि पर जोर दिया गया है सुहृन्मित्रायुदासीन मध्यस्थ-द्वेष्य-बन्धुषु । साधुष्वपि च पापेषु समबुद्धिविशिष्यते ।। -अध्याय ६/६ जो पुरुष सुहृत् (निःस्वार्थ हितैषी), मित्र, वैरी, उदासीन (निष्पक्ष), मध्यस्थ (तटस्थ), द्वेषी और बन्धुगणों के प्रति, सज्जन पुरुषों और पापियों के प्रति समबुद्धि-निष्पक्षपात-भाव वाला है, वही समताधारियों में विशिष्ट है। इसके बाद जाति समभाव का नम्बर आता है । समत्वबुद्धि वाला व्यक्ति गृहस्थ हो तो वह अपनी जाति-कौम में रहेगा, फिर भी उसकी बुद्धि में जातपांत, छूआछूत, पंक्तिभेद आदि का व्यवहार तथा अन्य जाति-कौमों के प्रति भेदभाव नहीं रहेगा। वह पक्षपातरहित होकर प्रत्येक जाति-कौमों के प्रति समभाव रखेगा, उनके मौलिक अधिकारों का हनन नहीं करेगा। हिन्दुस्तान और पाकिस्तान का विभाजन होते ही भारत और पाकिस्तान में हिन्दूमुस्लिम दंगे हो रहे थे । गाँधीजी की जाति-समभावी आत्मा यह देखकर तिलमिला उठी। उन्होंने स्वयं नोआखाली जाकर इन कौमी दंगों को शान्त कराया। दोनों कौमों के अग्रगण्यों को समझाया। पाकिस्तान को भारत के सरकारी खजाने से हिन्दू लोगों का विरोध होते हुए भी अमुक धन-राशि दिलायी। यह जाति समभाव का ज्वलन्त उदाहरण है। छूआछुत, जातपांत का भेद तो गाँधीजी को छू भी नहीं गया था। बल्कि अस्पृश्योद्धार के लिए स्वयं वे प्राणप्रण से जुटे थे जातिभेद या वर्णभेद के कारण जो अत्याचार शूद्रवर्ण या हरिजन जाति पर सवर्णों द्वारा किये जाते थे, उन्हें गाँधीजी ने एक-एक करके मिटाने का पुरुषार्थ किया था। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004011
Book TitleAnand Pravachan Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1979
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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