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________________ १७६ आनन्द प्रवचन : भाग ८ समभावी साधक के मन में जीवन और मरण दोनों प्रसंग एक-से होते हैं । जीए तो वे धर्म - पालन करते हैं और धर्मपालन करते हुए, यदि मृत्यु आ जाए तो भी हँसते-हँसते मृत्यु का वरण करते हैं । वे सोचते हैं कि हाथों में लड्डू हैं । यहाँ रहे तो अच्छा न रहे तो भी अच्छा ! गया तो हम अगली दुनिया में अलख जगाएँगे । हमारे तो दोनों ही यहाँ से शरीर छूट स्वामी दयानन्द सरस्वती को जब रसोइए ने दूध में घातक जहर मिलाकर दे दिया और जब उनके जीवन पर मृत्यु का संकट उपस्थित हो गया तो वे घबराये नहीं । न उन्होंने रसोइए पर कोई रोष किया न ही जहर दिलाने वाली वेश्या पर द्वेष किया । वे समाभाव - पूर्वक मृत्यु का आलिंगन करने के लिए तैयार हो गए । उनके मुंह से अन्तिम समय तक 'ओम्' की ध्वनि निकलती रही । उन्होंने इसे परमात्मा की इच्छा समझ कर प्रसन्नता से मृत्यु का वरण किया । वेदना थी सो थी ही, पर समभाव से सहते गये । 1 इसी प्रकार महात्मा गाँधीजी ने गोडसे द्वारा गोली मारे जाने पर गोडसे के प्रति कोई रोष या द्वेष व्यक्त नहीं किया । उनके मुंह से अन्तिम समय में हे राम ! की ध्वनि निकली । जीते रहे, तब तक वे देश सेवा के कार्य करते रहे, मर गए तो भी अमूल्य शिक्षाएँ देश को दे गए । नोआखाली में हिन्दु-मुस्लिम दंगों की आग में भी गाँधीजी ने जीवन मरण की बाजी लगाकर बंगाल में पैदल दौरा किया । उनको मारने के लिए उद्यत व्यक्ति के सामने भी उन्होंने कह दिया – “भाई ! यहाँ एकान्त है, तुम मुझे मारना चाहते हो तो मार दो ।" मारने के लिए उद्यत व्यक्ति के हाथ से छुरा नीचे गिर पड़ा। वह लज्जित होकर माफी माँगने लगा । तार्यमुनि पर जब स्वर्णकार ने स्वर्णयवों के चुराने का मिथ्या आरोप लगा कर उन्हें बुरी मौत से मारने को उद्यत हुआ, तब उन्होंने स्वर्णकार पर द्वेष न करते हुए समभावपूर्वक मृत्यु का वरण किया । तथागत बुद्ध का एक प्रसिद्ध शिष्य पूरण जब अनार्य देश सुमेरुपरान्त जाने को उद्यत हुआ तो बुद्ध ने उसको समता की कसौटी करने हेतु कहा - " पूरण ! वहाँ के लोग तो बड़े क्रूर हैं, तुम्हें गाली देंगे, तुम वहाँ कैसे जाओगे ? उसने कहा – “मैं समझँगा वे मुझे गाली ही देकर अपना सन्तोष करते हैं, वे लाठियों से पीटते नहीं । " "अगर वे तुम्हें लाठियों से पीटेंगे तो ? मैं समझँगा वे मुझे जान से तो नहीं मारते, केवल मारपीट या अंग-भंग करके ही चुप हो जाते हैं । "और अगर वे तुम्हारे अंग-भंग करके जान से मार डालेंगे तो ?” बुद्ध ने पूछा । उसके उत्तर में पूरण ने कहा—-“वे मेरे शरीर का ही तो नाश करेंगे, मेरी आत्मा का तो कुछ भी बाल बांका नहीं कर सकेंगे ।" यह सुनकर बुद्ध अत्यन्त सन्तुष्ट हुए और कहा - " वास्तव में जीवन-मरण में समता ही मनुष्य को आत्म-विकास करती है ।" Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004011
Book TitleAnand Pravachan Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1979
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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