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________________ सज्जनों का सिद्धान्तनिष्ठ जीवन १६३ अव्यवस्था नहीं होती, शान्ति होने पर साधना भी उत्साहपूर्वक होती है। अपने जीवन के निर्माण तथा आध्यात्मिक विकास के लिए भी सिद्धान्ताश्रय लेना आवश्यक है। सिद्धान्त का सहारा लिये बिना क्या कुमारपाल राजा अपनी जीवन नैया लक्ष्य की दिशा में खे सकता था ? कदापि नहीं, वह भटक जाता, और ऐसा भटकता कि फिर ऊँचा उठना कठिन होता । कुमारपाल राजा की कुलदेवी कण्टकेश्वरी के मंदिर में नवरात्रि के अवसर पर निरीह पशुओं का निःशंक बलिदान होता था। मंदिर के पुजारी ने आग्रह किया - "राजन् ! बलिदान के लिए बकरे, पाड़े आदि का इंतजाम कीजिए।" राजा कुमार पाल आचार्य हेमचन्द्र का परमभक्त था, उन्हीं से उसने अहिंसा सिद्धान्त का स्वीकार किया था। अहिंसक राजा यह हिंसा जनक कार्य कैसे कर सकता था ? अतः वह इस समस्या के समाधान के लिए आचार्य हेमचन्द्र के पास गया। उन्होंने कुमारपाल को गुप्त राय दी । तदनुसार पुजारी के कहे अनुसार राजा ने ठीक समय पर बकरे व पाड़े कण्टकेश्वरी देवी के मन्दिर में भिजवा दिये। जब बलिदान का समय आया तो राजा अपने कुछ कर्मचारियों को लेकर मन्दिर में पहुँचा और तमाम बकरों और पाडों को मन्दिर के अहाते में रख करके बाहर से दरवाजे लगवा कर ताले बंद करवा दिये। बाहर सख्त पहरा बिठा दिया। दुसरे दिन प्रातः काल होते ही राजा ने स्वयं वहाँ पहुँच कर मन्दिर का ताला खोला तो सभी पशु सकुशल जीवित थे। राजा ने देवी के पुजारी से कहा----"देखो ! यदि देवी की इच्छा इन मूक पशुओं को खा जाने की होती तो स्वयं मार कर खा जाती, परन्तु उसने एक भी पशु को नहीं खाया। इससे स्पष्ट है कि देवी को पशुवध करके उनका मांस खाना बिलकुल पसन्द नहीं, पुजारी लोग मांस खाने की अपनी लोलुपता को देवी के नाम पर थोपते हैं। 'अतः आज से देवी के मन्दिर में पशु-बलि बंद' फल और मिष्टान्न से देवी की पूजा करो।" यों कहकर सभी पशुओं को छोड़ दिया। हाँ, तो सिद्धान्त के पालन से कितने जीवों को अभयदान मिला, स्वयं कुमार पाल राजा को शान्ति मिली। कुछ समय पश्चात् राजा के शरीर में कोढ़ हो गया तब भी कई राज्याधिकारियों ने उनसे पशुबलि देने को कहा, मगर सिद्धान्तनिष्ठ कुमारपाल राजा ने कहा-मैं निर्दोष पशुओं की हिंसा करके अपने प्राण बचाना नहीं चाहता। मेरे शरीर की बलि हो सकती है, पर मेरे जीते-जी मेरे राज्य में पशुबलि नहीं हो सकती। यह है, सिद्धान्तनिष्ठा का ज्वलन्त उदाहरण जिसने गुर्जरेश्वर कुमारपाल राजा को अमर और महान् बना दिया । वास्तव में सिद्धान्तनिष्ठा मनुष्य की सच्चाई का प्रमाणपत्र है। आपने वट वृक्ष देखा है न ? वह जितना ऊपर उठा और फैला हुआ दीखता है, उतना ही वह जमीन के भीतर धंसा हुआ होता है । उसकी जड़ें काफी गहरी, काफी घेरा घेरती और काफी संख्या में होती हैं। यदि वे न हों, कम हों या कमजोर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004011
Book TitleAnand Pravachan Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1979
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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