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आनन्द प्रवचन : भाग ८
बेतहाशा भागते फिरेंगे, हजारों धनिक उसके पीछे लग जायेंगे, लाखों स्वार्थी उसके चरण सेवक बन जायेंगे, हजारों-लाखों उसकी पूजा करने लगेंगे, लाखों की भीड़ उसके चारों ओर मंडराती फिरेगी, लोगों में वह भगवान् की तरह पुजने लगेगा, बुद्धि और विवेक के ब्रह्मचारी लोग उसके वचन को परमात्मा का वाक्य समझने लगेंगे। यहाँ तक कि वे वीतराग परमात्मा को छोड़कर उस चमत्कारी पुरुष को ही सर्वस्व मानने लगेंगे। उनकी श्रद्धा हिमालय के उत्तुंग शिखर-सम निरंजन निराकार परमात्मा से उतरकर अपने पुण्यपुञ्ज से पूजित होते हुए हिमालय की तलहटी में स्थित भौतिक आकर्षण से चकाचौंध कर देने वाले उस सांसारिक व्यक्ति में ओतप्रोत हो जायेगी। अपने स्वार्थ के लिए वे देव, गुरु और धर्म के उच्च आदर्शों को भी ताक में रख देंगे, और अपनी आस्था स्वार्थ-साधक व्यक्ति के चरणों में समर्पित कर देंगे, अपने विश्वास उसी पर केन्द्रित कर देंगे। अपने स्वार्थ में जरा-सा धक्का पहुँचा, या अपनी कुछ भौतिक या आर्थिक क्षति हुई, अपने अरमान पूरे न हुए कि वे अपने परम्परागत आदर्श देव, गुरु और धर्म को तिलांजलि देते देर नहीं लगायेंगे। ऐसे स्वार्थजीवी लोगों की श्रद्धा इतनी शिथिल होती है कि जरा-से चमत्कार और प्रलोभन से डगमगा जाएगी और अधिकाधिक चमत्कारी या प्रलोभित करने वाले व्यक्ति की ओर झुक जाएगी। तात्पर्य यह है कि सामान्य व्यक्ति की निष्ठा सिद्धान्तों और आदर्शों के प्रति स्थिर नहीं रहती। वे कहने को तो अपने को परम आस्तिक, परमभक्त, आदर्श या अग्रगण्य श्रावक, परम धार्मिक, भगवान के अनुयायी कहेंगे, दुनिया भी स्थूलदृष्टि से उनका मूल्यांकन करके उन्हें वैसा कहेगी, पर वे उतने गहरे पानी में नहीं होते । जैसे चील या गिद्ध आदि आकाशचारी पक्षी चाहे जितनी ऊँची उड़ान भर लें, उनकी दृष्टि नीचे धरती पर स्थित मांस या मृत कलेवर पर लगी रहती है, वैसे ही ऐसे संकीर्ण एवं स्थूल दृष्टि वाले स्वार्थजीवी लोग अध्यात्म के आकाश में चाहे जितनी ऊँची उड़ान भर लें, लोगों को अपनी उड़ान से प्रभावित भी कर लें, लेकिन उनकी दृष्टि नीचे धरती पर स्थित भौतिक आकर्षणों, स्वार्थ, सम्मान, प्रतिष्ठा, धन, वैभव, सुखोपभोग आदि पर ही रहती है। ऐसे लोग पूर्व पुण्यों की प्रबलता के कारण संसार में सत्कार-सम्मान, धन-वैभव, ऐश-आराम, पूजा-प्रतिष्ठा, सत्ता और प्रभुता अवश्य पा जाते हैं, पर उनके जीवन की जड़ें गहरी नहीं होती, उनकी आदर्श निष्ठा या सिद्धान्तनिष्ठा मगमरीचिका की तरह भोले-भाले लोगों को अपनी ओर खींचने वाली होती है लेकिन वह होती है बालू की नींव पर ही टिकाई हुई।
इस पर से आप समझ सकते हैं कि सामान्य व्यक्ति के जीवन में और सिद्धान्तनिष्ठ सज्जन के जीवन में कितना अन्तर होता है ? सिद्धान्तनिष्ठ सज्जन का जीवन
सिद्धान्तनिष्ठ सज्जन व्यक्ति जीवन के उच्चतम मूल्यों और आदर्शों को
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