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________________ सज्जनों का सिद्धान्तनिष्ठ जीवन १५१ तो मार्गानुसारी या सामान्य सम्यक्त्वी श्रावक तक की भूमिका अपना लेता है, इससे आगे की व्रतबद्ध एवं धर्मनिष्ठ श्रावक की भूमिका तक वह नहीं पहुँचता। सत्यं, शिवं और सुन्दरम् इस जीवननिर्माता त्रिपुटी में वह 'सुन्दरम्' को ही विशेष पसन्द करता है, सत्यं उसको स्वार्थमय और संकीर्ण जीवन जीने में बाधक प्रतीत होता है, 'शिवम्' के लिए भी उसे परमार्थ और परोपकार के पथ पर चलना पड़ता है, जो उसे दुःसह लगता है। इस प्रकार सामान्य व्यक्ति का व्यावहारिक जीवन संसार के स्थूल दृष्टि वाले लोगों की दृष्टि में कदाचित् धन की प्रचुरता होने के कारण या शरीर सौन्दर्य, विशिष्ट कला, विद्या या प्रचुर बौद्धिक वैभव होने के कारण प्रशंसनीय और आदरणीय बन सकता है, व्यवहार में वह संसार का सुखी, प्रतिष्ठित और आरामतलब व्यक्ति समझा जाता है, उसे सांसारिक लोग अधिक सन्तान पैदा करने के कारण, अधिक धन-उपार्जन करके थोड़ा-सा राहत कार्य में खर्च कर देने के कारण अथवा अपने परिवार या समाज में या राष्ट्र में किसी को मारने, किसी को युद्ध में हराने या किसी को कुश्ती में पछाड़ने अथवा सौन्दर्य आदि की प्रतियोगिता में अग्रस्थान पाने के कारण सम्मानित किया जा सकता है, वह चुनाव आदि में तिकड़मबाजी के द्वारा उच्च पद या सत्ता का स्थान भी प्राप्त कर लेता है, यहाँ तक कि पुण्य या राहत के अनेक कार्य करके वह दूर-दूर तक प्रसिद्धि भी पा लेता है। जहाँ भी जाता है, अपने पूर्व प्रबल पुण्य के कारण, अपने धुंआधार भाषणों से लोगों को प्रभावित कर देता है, अपने वचनों से आम जनता को आकर्षित कर लेता है, अनेक लोगों को अपने इशारे पर बचा सकता हैं, अनेक व्यक्तियों को अपने अधीन नौकरचाकर रख लेता है, अपनी चालाकी या बहादुरी के कारण या साहसपूर्ण कार्यों के कारण सांसारिक लोग उसे अभिनन्दन-पत्र देते हैं, उसे उच्च-आसन देते हैं, उच्च पद भी देते हैं, उच्च अधिकार भी देते हैं। धार्मिक या आध्यात्मिक क्षेत्र में भी वह अपनी वाचालता, धन-सम्पन्नता, चालाकी और तिकड़मबाजी से हजारों-लाखों लोगों को अपने अनुयायी बना लेता है, यहाँ तक कि अध्यात्मयोगी, अवतार, गुरु, धर्मनेता, आचार्य या भगवान् के नाम से वह संसार में पूजा भी पाता है। उसकी भाषणशैली और लेखनशैली इतनी आकर्षक होती है कि उससे आकर्षित होकर लोग उसके पैर पूजते हैं, हजारों-लाखों रुपये उस पर न्यौछावर कर देते हैं, उसे हाथों में उठा लेते हैं, उसके लिए एक से एक बढ़कर सुख-सुविधाएँ जुटा देते हैं, यहाँ तक कि विशिष्ट सुन्दरियाँ, अनेक ऐश-आराम के साधन, बंगले, कार और अद्यतन साधन उसकी सेवा में प्रस्तुत कर देते हैं। संसार का कोई भी मौज-शौक का साधन ऐसा नहीं, जो उसकी सेवा में प्रस्तुत न किया जाता हो। उसके थोड़े-से चमत्कारों, हाथ की सफाई या जादूगर जैसे खेलों पर लोग लट्ट हो जाते हैं, किसी को पुत्र दे दिया, किसी को धन दे दिया, किसी को मुकद्दमे में जिता दिया, किसी रोगी को ठीक कर दिया, किसी की चिन्ता दूर कर दी, किसी को उच्च पद या सत्ता का स्थान दिला दिया या किसी को अच्छी नौकरी दिला दी, बस, फिर क्या पूछना, लाखों लोग उसके पीछे-पीछे Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004011
Book TitleAnand Pravachan Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1979
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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