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________________ १४८ आनन्द प्रवचन : भाग ८ दिन डबने से पहले मंजिल पर पहुंच जाए। ऐसा चतुर मुसाफिर धोखा कभी न खाए ॥कल०॥ उड़ता हुआ समय नहीं राह देखता किसी की। जो चूकते न अवसर सुनता है बस उसी की ॥" सब बातें अभी ही सम्भव हैं। सर्वशक्ति अभी करने में लगा दीजिए, बस आपका सत्कार्य पूर्ण होकर रहेगा। शतपथ ब्राह्मण में कहा है ____ अद्धा हि तद् यदद्य, अनद्धा हि तच्छ्वः जो आज है, वह निश्चित है, जो कल होगा, वह अनिश्चित है। जो जीवन का महत्व जानते हैं, वे अवसर ही प्रतीक्षा नहीं करते। उनके लिए आज ही अभी स्वर्ण अवसर है। उत्तराध्ययन सूत्र में इस तथ्य को उजागर करते हुए कहा गया है जस्सस्थि मच्चुणा सक्खं जस्सवऽस्थि पलायणं । जो जाणे न मरिस्सामि सोहु कंखे सुए सिया ।। अर्थात्-जिसके मृत्यु के साथ दोस्ती है, जो मृत्यु के आने पर दूर भाग सकता है, या जो यह जानता है कि मैं कभी मरूंगा ही नहीं, वही आने वाले कल का भरोसा कर सकता है। इंगलैण्ड के दो व्यक्ति जर्मन आदि देशों में गए । एक आदमी दिन में जो कुछ देखता, फौरन शाम को लिख लेता और दूसरा कल पर छोड़ देता। पहले ने किताब बनाकर हजारों रुपये कमाये और दूसरा यों का यों ही रह गया। इसीलिए शेक्सपीयर कहता है-"आज का अवसर घूमकर खो दो, कल भी वही बात होगी और फिर अधिक सुस्ती आ जाएगी।" 'कल' शैतान का दूत है ! इतिहास के पृष्ठों पर इस कल की धार से कितने ही प्रतिभाशालियों का गला कट गया। युधिष्ठिर ने दान के लिए आये हुए ब्राह्मण को कह दिया- "कल दूंगा!" इस पर भीम ने जीत का नगारा बजा दिया। पूछने पर कहा-आपने काल को जीत लिया है, इसीलिए तो ब्राह्मण को 'कल' दक्षिणा देने को कहा है। युधिष्ठिर ने अपनी भूल स्वीकार की और उसी समय ब्राह्मण को दान दे दिया। महाभारत में कहा है श्वः कार्यमद्य कुर्वीत, पूर्वाह्न चापराह्निकम् । नहि मृत्युः प्रतीक्षेत, कृतं चास्य न वा कृतम् ॥ कल का काम आज और पिछले प्रहर का प्रथम प्रहर में ही कर लो, क्योंकि मृत्यु यह नहीं देखती कि इसने कार्य कर लिया या नहीं? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004011
Book TitleAnand Pravachan Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1979
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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