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आनन्द प्रवचन : भाग ८
"कटुकं वा मधुरं वा प्रस्तुत वाक्यं मनोहारि । गर्दभनादश्चित्तप्रीत्यं प्रयाणेषु ॥ "
वामे
वाक्य चाहे कटु हो या मधुर, किन्तु यदि वह प्रसंगोचित, समयानुकूल हो तो मनकी अच्छा लगता है, जैसे प्रस्थान काल में बायीं ओर गधे का भौंकना कर्कश होते हुए भी चित्त को प्रीतिकारक होता है ।
नीतिवाक्यामृत में कहा है- " अकाले विज्ञप्तं कृष्टे ऊषरमिव । "
- असमय में किया हुआ निवेदन ऊषर में की हुई खेती के समान है ।
शुभ कार्य के लिए हर दिन शुभ है
कई लोग कहते हैं कि शुभ कार्य अच्छा मुहूर्त देखकर प्रारम्भ करना चाहिए । अगर मुहूर्त में विलम्ब हो तो कार्य विलम्ब से शुरू करना चाहिए । परन्तु यह अन्धविश्वास है । इसके पीछे किसी प्रकार का विवेकसम्मत तर्क नहीं है। हर दिन पवित्र और शुभ है । यह बात अलग है कि परिस्थिति, संयोग या अवसर के कारण कोई वार अथवा तिथि किसी के लिए असुविधाजनक हो । विद्वानों का कहना है कि शुभ कार्यों के लिए प्रत्येक दिन शुभ है और अशुभ कार्यों के लिए प्रत्येक दिन अशुभ है । शास्त्रों में शुभ कार्य के लिए तीर्थंकरों का वचन है- ' मा पडिबंधं करेह' अर्थात् सत्कार्य में किसी प्रकार की ढील मत करो । 'शुभस्य शीघ्रम्' इस न्यायानुसार दान देना, अध्ययन करना, धर्माचरण करना आदि सत्कार्य जितने भी शीघ्र हों करने चाहिए । नीतिकार कहते हैं- “ क्षिप्रम क्रियमाणस्य कालः पिबति तद्रसम्” कोई भी सत्कार्य विलम्ब से किये जाने पर काल उसका रस, उत्साह, उमंग आदि पी लेता है । अनेक लोग बहकाने, भड़काने वाले मिलते हैं । सोमनाथ महादेव पर महमूद गजनवी के आक्रमण के समय राजपूत राजाओं ने राजज्योतिषियों की मुहूर्तवादिता के कारण विलम्ब से सामना करने के कारण हार खाई । शुभ मुहुर्त के चक्कर में पड़कर बंगाल पर बख्त्यार खिलजी के आक्रमण के समय भी अन्धविश्वासी हिन्दू राजा सामना न कर सका और भाग गया। जिससे बिना लड़े ही जीत खिलजी की हो गई। बाल्मीकि रामायण के अनुसार रावण समुद्र पर पुल बनाने जैसे शुभकार्य के लिए शुभ मुहूर्त खोजता रहा, मगर 'सीताहरण' जैसे अशुभ कार्य के लिए उसने कोई मुहूर्त न देखा । अगर अशुभ कार्य के लिए वह मुहूर्त देखकर चलता तो इतिहास दूसरा ही होता । अतः मुहूर्त का विचार करना ही हो तो अशुभ कार्य के लिए करो, ताकि वह विलम्ब से आए, तब तक व्यक्ति के जीवन में सद्बुद्धि आ जाए । शुभकार्य के लिए मुहूर्त देखने की टालमटोल करने की आवश्यकता नहीं है ।
वर्तमान का महत्व समझें
'अभी तो नहीं, फिर कभी देखेंगे। क्या करें, समय ही नहीं मिलता फिर कभी कभी समय मिलने पर करेंगे' ये वाक्य सज्जन और समय पारखी महानुभावों के नहीं
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