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________________ ११० आनन्द प्रवचन : भाग ८ इतनी समता आ जाती है कि वह दूसरों को दुःखी देखकर अपने प्राण भी देने को तैयार हो जाता है । 1 रामगढ़ का राजा रामसिंह उदार विद्वान और न्यायपरायण था । उसकी कीर्ति दूर-दूर तक फैली हुई थी । श्यामगढ़ के राजा श्यामसिंह को ईर्ष्या हुई । वह रामसिंह जैसे विद्वान और उदार राजा को मिटाने के लिए तत्पर हो गया । अचानक ही एक दिन श्यामसिंह ने रामगढ़ पर चढ़ाई कर दी । रामसिंह ने जब यह अप्रत्याशित हमला देखा तो सोचा - "युद्ध तो अनेक वैरविरोधों की जड़ है । मुझे वैरविरोध से दूर रहना है । अन्यायी और विरोधी को मिटाने की अपेक्षा मेरी नीति उसके अन्याय और विरोध को मिटाने की है । शत्रु को नहीं, उसकी शत्रुता को मिटाना चाहता हूँ तो मुझे आक्रमण के बदले प्रत्याक्रमण नहीं करना चाहिए। क्योंकि युद्ध में हजारों निर्दोष आदमियों का संहार हो जाएगा। जिन्हें जय-पराजय से कोई मतलब नहीं है । उनकी मृत्यु से उनके स्त्री- बच्चे अनाथ हो जाएँगे । हजारों व्यक्तियों का शाप मुझे लगेगा । मैं अपनी विजय के लिए उनको मरवाऊँ यह तो घोर स्वार्थ है । इससे बेहतर यह है कि मैं ही चुपचाप राज्य का मोह छोड़कर अपना जीवन यापन करने कहीं चला जाऊँ । " यों सोच कर राजा रामसिंह ने महल से निकलकर जंगल में पहाड़ की एकान्त गुफा में अपना डेरा जमाया । एकान्त और शान्ति के वातावरण में वह अपनी साधना में लीन रहने लगा । एक दिन गाँव के दो गरीब चमार जंगली और मंगली वहाँ लकड़ी काटने आये । वे गुफा के पासवाले वृक्ष से लकड़ी काट रहे थे । मंगली जंगली से कहने लगा- अरे ! राजा श्यामसिंह की घोषणा तूने नहीं सुनी । रामसिंह को कोई ले आयेगा, उसे वे एक लाख रुपये देने को तैयार हैं। अगर यहाँ रामसिंह मिल जाता तो हम उसे पकड़ ले जाते और हमारा दारिद्र्य दूर हो जाता है ।" जंगली ने उसका प्रतिवाद किया कि हमें ऐसे दयालु धर्मात्मा और सज्जन को पकड़ने का विचार ही नहीं करना चाहिए ।" यह चर्चा गुफा में बैठे राजा रामसिंह ने सुनी । वे सहसा गुफा से बाहर आकर उन दोनों गरीब चमारों के पास खड़े हो गए, कहने लगे - अगर तुम दोनों का दारिद्र्य मेरे निमित्त से दूर होता है तो मेरे लिए बहुत सुन्दर परोपकार का अवसर है मैं तुम दोनों को अपने ही समझता हूँ । तुम दोनों मुझे राजा श्यामसिंह के पास ले चलो और उनसे लाख रुपये इनाम पा लो "नहीं, दयालु महाराज ! हमसे आप जैसे धर्मात्मा सज्जन को मरवाने का पाप नहीं हो सकता ।" यह बात हो रही थी, इतने में वहाँ चार पथिक आ गये । उन्होंने राजा रामसिंह को पहचान कर पकड़ लिया और लेकर सीधे राजा श्यामसिंह के पास पहुँचे । जंगली भी रोता- रोता उनके पीछे-पीछे श्यामसिंह के निकट पहुँच गया । राजा ने पूछा- क्या तुमने इन्हें पकड़ा है ? बहुत अच्छा किया ।" वे चारों हाँ कह रहे थे, लेकिन राजा को उनकी बात सच न लगी । उसने राजा रामसिंह की ओर जिज्ञासापूर्वक दृष्टि की । रामसिंह ने कहा- आप सच्ची बात जानना ही चाहते हैं तो मैं कहूँगा - इन चारों ने मुझे नहीं पकड़ा, पकड़ा है उसने, जो Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004011
Book TitleAnand Pravachan Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1979
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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