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________________ पण्डित रहते विरोध से दूर १०७ पण्डित कहने लगते हैं । न उनमें कोई पाण्डित्य होता है और न ही उनमें विरोध से विरत होने की तमन्ना होती है। वे अपनी शेखी बघार कर गाँव में कई लोगों को अपने विरोधी बना लेते हैं। भोले-भाले लोगों को शाप दे देने या तिकड़मबाजी करके किसी की हत्या करा देने की धमकी देते हैं, कभी हत्या करा भी देते हैं, या आग लगवाकर नुकसान पहुंचा देते हैं। इस प्रकार वे अपनी करतूतों से अनेक लोगों को अपने विरोधी या शत्रु बना लेते हैं । कुछ भी हो, चाहे पढ़-लिखकर ऐसे लोग धुरन्धर विद्वान् भी बन जाय, मगर उनमें व्यवहार-कुशलता न हो, किसके साथ किस प्रकार का व्यवहार करना चाहिए? कौन व्यक्ति कैसा है ? उसके प्रति मेरा क्या कर्तव्य है ? इस प्रकार सहिष्णुता, मिलनसारी, उदारता, गुणग्राहकता, निरहंकारिता, प्रेम और आदरभाव आदि विरोधशमन के गुण न हों, वहाँ तक उनका पाण्डित्य भी भारभूत है, ऐसे लोग प्रायः अव्यावहारिक एवं रूखे-सूखे होते हैं । चार ब्राह्मण पुत्र काशी से पढ़कर अपने-अपने विषय में धुरन्धर विद्वान् बन कर अपने गाँव को लौट रहे थे। उनमें से एक ज्योतिषाचार्य था, दूसरा व्याकरणाचार्य था, तीसरा न्यायाचार्य था और चौथा आयुर्वेदाचार्य था। पर थे चारों पूरे व्यवहारकुशलता से शून्य, दूसरे किसी से कुछ पूछने में वे अपनी तौहीन समझते थे। अहंकारी भी कम न थे। काशी से चलकर वे एक गाँव में पहुँचे । एकत्र छोटी-सी धर्मशाला में उन्होंने डेरा डाला। चारों को कड़ी भूख लगी थी। खाने-पीने का सामान लेने और रसोई बनाने का काम चारों ने बाँट लिया। व्याकरणाचार्य के जिम्मे सामान आ जाने पर रसोई बनाने का काम सौंपा गया। आयुर्वेदाचार्य को साग लाने का काम सौंप दिया। न्यायाचार्य को घी लाने का और ज्योतिषाचार्य को अन्य खाद्य-सामग्री लाने को कहा गया । आयुर्वेदाचार्य सबसे अच्छा गुणकारी सागनीम का समझकर ले आया। न्यायाचार्य एक बर्तन में घी ले रहा था, तभी उसके दिमाग में तर्क उठा-यह घी पात्र (बर्तन) के आधार पर है या बर्तन घी के आधार पर है ? इसका निर्णय करने के लिए उसने घी का बर्तन औंधा कर दिया। बस फैसला हो गया, घी सारा का सारा जमीन पर गिर गया। नैयायिक जी खाली हाथ लौट आए । ज्योतिषाचार्य अच्छा मुहुर्त देखकर खिचड़ी का सामान ले आए और व्याकरणाचार्य को सौंप दिया। उन्होंने हँडिया में पानी और खिचड़ी डाल कर चूल्हे पर चढ़ा दिया । आग की गर्मी से खिचड़ी खद-बद करने लगी। वैयाकरण भला इस अशुद्ध उच्चारण को कैसे सहते ? उन्होंने डण्डा उठा कर हँडिया से दे मारा। हँडिया फूट गई। अब खदबद शब्द होना बन्द हो गया। हँडिया फूटने से सारी खिचड़ी धूल में मिल गई। बेचारे चारों अहंकारी शुष्क पण्डित भूखे के भूखे रहे । सिद्धान्त और व्यवहार में मेल न कर सकने के कारण चारों पण्डित का बुरा हाल हुआ। हाँ, तो ऐसे पोथी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004011
Book TitleAnand Pravachan Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1979
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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