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धर्म-नियन्त्रित अर्थ और काम ६३
देखकर एकबार पूज्य श्रीरघुनाथजी महाराज ने कहा- सिंघीजी । मानवजन्म अत्यन्त दुर्लभता से मिला है । इसे धर्माचरण करके सार्थक करना चाहिए ।" इस पर उन्होंने कहा - " मेरे पास बड़ी हवेली है । सुन्दर सुशील पत्नी है । नौकर चाकर हैं । सब तरह का ठाठ है । फिर धर्माचरण करने से क्या होगा ? क्या जरूरत है— धर्माचरण करने की ?
" मेरी बात कड़वी न मानो तो कहूँ ?" पूज्य श्री ने कहा । सिंघीजी बोले -"हाँ कहिए न महाराज साहब !"
पूज्यश्री ने कहा - " अगर आप मरकर कुत्ता बन गये तो क्या इस हवेली में आपको घुसने देंगे, आपके परिवार वाले लोग ?”
सिंघीजी - "नहीं, महाराज ! तब तो डंडा मारकर भगा देंगे ।
पूज्य श्री — इसलिए तो मैं कहता हूँ, आप धर्म - साधना करिये, वही आपको इहलोक - परलोक में सुखी बनाएगी। सभी स्थितियों में धर्म-साधना जीवन के लिए सुख-शान्तिदायक है । आप अपने परिवार का पालन करें, पर धर्ममर्यादा में रहकर ।" सिंघीजी सारी बात समझ गए। तभी से उन्होंने अपना जीवन धर्म ध्यान में लगा दिया ।
आनन्द, कामदेव वगैरह गृहस्थ श्रावकों के पास सम्पत्ति की कमी नहीं थी, कामभोग के सभी साधन भी थे, वे इन्द्रिय-विषयों का यथावसर उपभोग भी करते थे, परन्तु उनका अर्थ और काम का सब कुछ पुरुषार्थ धर्म की मर्यादा में होता था । इतनी धर्मकरणी होने पर भी जनता दुःखी क्यों ?
कई वर्तमान परिस्थिति से असंतुष्ट लोग यों कहा करते हैं कि आज पहले की अपेक्षा अधिक संख्या में मन्दिर, उपाश्रय, गुरुद्वारे, मस्जिद आदि धर्मस्थान बन गए हैं, बनते जा रहे हैं । लोग भी बड़ी भारी संख्या में धर्म-श्रवण करने आते हैं । धर्म स्थानों में भी भीड़ रहती है । धर्मक्रिया भी बहुत करते हैं, पर्युषण के दिवसों में तो धर्म ध्यान का ठाठ लग जाता है, फिर भी हम देखते हैं कि लोग दुःखी हैं । चिन्तित हैं, अस्वस्थ हैं, मानसिक क्लेश से पीड़ित रहते हैं । उन्हें अच्छा परिवार नहीं मिलता इसका क्या कारण है ?
मेरी दृष्टि में तो इसका कारण यह मालूम होता है कि आज धर्माचरण तो बहुत कम होता हैं, धर्म का दिखावा ज्यादा होता है । बड़े-बड़े शहरों में आपने 'शोरुम' देखे होंगे । उनमें अच्छी से अच्छी व तु सजाई हुई रहती है, परन्तु वे चीजें केवल देखने भर की होती हैं, आपको मिल नहीं सकती वहाँ से । इसी प्रकार धर्म की व्यास पीठ पर से जितने भाषण होते हैं, और जितने श्रोता आते हैं, उनमें से धर्माचरण करने वाले बहुत ही कम मालम होंगे । यही कारण है कि आज धर्मक्रिया या धर्मस्थानों में लोगों की भीड़ बहुत होती है, परन्तु उनमें वास्तविक धर्माचरण करने वाले
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