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धर्म-नियन्त्रित अर्थ और काभ ६१
था,
कौन अतिथि या साधु घर में आता है, उसके प्रति क्या कर्तव्य हैं ? साधु रसोई घर में गया । उस गृहस्थ की पुत्रवधू बड़ी धार्मिक थी' उसने बड़ी भावभक्ति से सन्त को भिक्षा दी। साथ ही सन्त का इस छोटी उम्र में वैराग्य देखकर उसने पूछा"मुनिवर ! अभी तो सबेरा है ।" मुनिवर ने कहा - " बहन ! काल का पता नहीं था ।" बूढ़ा ! जो अब तक अपने हिसाब-किताब में मग्न था, चौकन्ना होकर दोनों का वार्तालाप सुनने लगा । वह प्रश्नोत्तर सुनकर मन ही मन सोचने लगा – ऐसी मूर्ख पुत्रवधू है और ऐसा ही मूर्ख यह सन्त है । दोपहर होने आया हैं, फिर भी दोनों को समय का पता नहीं हैं, आश्चर्य है ।'
मुनिवर ने बहन को धार्मिक समझ कर पूछा - " बहन ! तुम्हारे घर का क्या आचार है ?" वह बोली - "हम तो बासी भोजन करते हैं ? यह सुनकर बूढ़ा अत्यन्त खीज उठा ! ओह, कितना झूठ ? हमारे घर की बदनामी करती है यह तो ! मुनि ने पूछा - " बहन ! तुम्हारे पति की उम्र कितनी है ? तुम्हारे पुत्र की एवं तुम्हारे श्वसुर की कितनी उम्र है ? और तुम्हारी आयु कितनी है ?"
- "तुम
उसने कहा - "मेरे पति की उम्र चार वर्ष की है, पुत्र की बारह वर्ष की है, मेरे श्वसुर तो अभी पालने में झूल रहे हैं और मैं बीस वर्ष की हूँ ।" यह सुनते ही श्वसुर एकदम कोपायमान हो गए। कितनी गप्प हाँकती है यह ?" मुनिवर तो यों कहकर चले गए । बूढ़ा एकदम तन कर आया और पुत्रवधू से पूछने लगा - ' दोनों क्या अटपटी बातें कर रहे थे ? तुमने बासी भोजन के तथा उम्र के विषय में जो अंटसंट गप्पे हांकी हैं उसका क्या अर्थ है ?" पुत्रवधू ने अत्यन्त नम्रता से कहा " पिताजी ! आपको इन बातों का रहस्य समझना हो तो गुरु महाराज के पास पधार जाइए । मैं आपसे बहस करूँ, यह छोटे मुँह, बड़ी बात होगी ।"
बूढ़ा सेठ सीधा उपाश्रय में पहुंचा और युवक संत के गुरु से विवाद करने लगा। मुनिवर ने उन युवक मुनि को बुलाकर पूछा- ये सेठ, जो कुछ कह रहे हैं, उसका समाधान करो | युवक संत ने कहा – तुम्हारी पुत्रवधू बहुत गुणवती एवं धार्मिक है। उसने यौवन में वैराग्य देखकर मुझसे पूछा था- - अभी तो बहुत ही छोटी उम्र है, इस उम्र में यह वैराग्य कैसे ? मैंने उसका उत्तर दिया था कि काल का पता नहीं, कब आ धमके, इसलिए मैंने यह वैराग्य लिया है। फिर मैंने घर के आचार के विषय में पूछा तो उसने कहा- यहाँ तो सब बासी खाते हैं । बासी खाने का मतलब है - पूर्वजन्म की जो धर्म कमाई है उसी को अभी तक खा रहे हैं, नई कोई धर्म कमाई अभी नहीं कर रहे हैं, फिर मैंने उम्र के बारे में पूछा था । उम्र की वास्तविक शुरूआत तभी मानी जाती हैं, 'जब धर्माचरण का जीवन में श्रीगणेश हो । आपकी पुत्रवधू ने जो बताया उसका रहस्य यही है कि मेरे पति ४ वर्ष से धर्माचरण में लगे हैं, पुत्र १२ वर्ष से लगे हैं, स्वयं बीस वर्ष से लगी हुई है, और आपके लिए कहा कि श्वसुरजी अर्थ- काम के पालने में
तो अभी धर्म-ध्यान में लगे ही
नहीं हैं । अभी तो वे
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