________________
७८
आनन्द प्रवचन : सातवाँ भाग
सीता को वापिस कर दो।' पर रावण अगर सरलता से इस बात को मान लेता तो क्यों सदा के लिए अपने माथे पर कलंक का टीका लगाकर इस संसार से जाता ? उसने भाई की बात नहीं मानी और खिन्न होकर विभीषण ने राम की शरण ली। एक भजन में कहा भी है कि विभीषण ने राम से प्रार्थना की
कुटुम्ब तजि शरण राम, तेरी आयो !
तजि गढ़ लंक महल औ मन्दिर नाम सुनत उठ धायो। इस पर फिर राम ने क्या किया ?
दीनानाथ दीन के बन्धु मधुर वचन समझायो।
आवत ही लंकापति कीन्हो हरि हँस कंठ लगायो। इस प्रकार शत्रु के भाई का भी धर्मरूपी राम ने स्वागत किया और उसे 'लंकापति' सम्बोधन सहित सहर्ष अपने हृदय से लगाकर सान्त्वना दी।
(३) महामोह का तीसरा पुत्र है मिश्रमोहनीय । यह जिधर जाएगा उधर ही लुढ़क जाएगा। रावण से कहेगा---'तुम राजा हो, शक्ति-सम्पन्न भी हो, अतः अपने बल से अगर सीता को ले आए तो क्या हुआ ?' दूसरी ओर राम से कहेगा--'रावण ने अन्याय किया है, उसका बदला लेना ही चाहिए।' ___ इस प्रकार रावण के दो भाई हुए और पत्नी मंदोदरी । आध्यात्मिक दृष्टि से प्रपंच-माया-कपटी वृत्ति । अपने पति की आज्ञानुसार इसने भी सीता को बहकाने का प्रयत्न किया था, किन्तु अपने प्रयत्न में सफल नहीं हो सकी। महासती सीता ने इसकी तीव्र भर्त्सना करते हुए तथा अपमानित करते हुए भगा दिया। मिथ्यामोह रावण का प्रथम पुत्र-इन्द्रजीत
रावण की पत्नी मन्दोदरी से उत्पन्न दो पुत्र थे और वे रावण को अत्यन्त प्रिय लगते थे। प्रथम का नाम था इन्द्रजीत और दूसरे का मेघवाहन । आध्यात्मिक दृष्टि से इन्द्रजीत को विषय-विकार एवं मेघवाहन को अभिमान कहा जा सकता है । मिथ्यामोह रावण समझता था कि विषय-वासनारूपी इन्द्रजीत एवं अभिमान रूपी मेघवाहन, दोनों ही मुझे अत्यन्त सुख पहुंचाने वाले हैं । किन्तु सच पूछा जाय तो इन दोनों के समान दुःखदायी इस संसार में और कुछ नहीं है।
प्रथम विषय-विकार को ही लिया जाय तो स्पष्ट समझा जा सकता है कि
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org