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________________ आध्यात्मिक दशहरा मनाओ ! ७७ कैकसी है । दम्पति सन्तानविहीन भी नहीं है। उनके सन्तान हैं, जिनके विषय में आगे कहा जा रहा है। तीन पुत्र महामोह और क्लेशरूपी दम्पति के तीन पुत्र हैं। उनमें से प्रथम है(१) मिथ्यामोहरूपी रावण । इसका अर्थ है-झूठे लालच में फँसना । मिथ्यामोह वस्तुतः रावण है, क्योंकि इसके दस मस्तक और बीस भुजाएँ भी हैं । वे दस मस्तक और मुख तथा बीस भुजाएँ कौनसी हैं ? इस विषय में जानने की आपको उत्सुकता होगी अतः उन्हें भी बताता हूँ। आशा है आप दस मिथ्यात्वों के विषय में जानते होंगे । जीव को अजीव और अजीव को जीव समझना, धर्म के अधर्म और अधर्म को धर्म समझना तथा धर्म के मार्ग को पाप का मार्ग और पाप के मार्ग को धर्म का मार्ग समझना आदि-आदि जो दस मिथ्यात्व हैं ये मिथ्या, मोहरूपी रावण के दस मुख हैं तथा हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील, परिग्रह, तीनों योगों को ढीला रखना तथा अयतनापूर्वक लेना आदि-आदि बीस प्रकार के आश्रव इसकी बीस भुजाएँ होती हैं जिनके द्वारा यह पापों का संचय करता रहता है। पापकर्मों का उपार्जन कपट से होता है अतः कपट-विद्या भी इसने हासिल कर रखी है। ___ कपट-विद्या के कारण ही रावण ने राम को ठगना चाहा था तथा स्वर्णमृग के रूप में सीता का हरण किया था, किन्तु उसका परिणाम क्या निकला ? सीता को तो वह प्राप्त कर नहीं सका, उलटे अपना सर्वस्व और प्राण भी गँवाकर आत्मा को कुगति में ले गया । दूसरे शब्दों में राम को ठगने गया किन्तु स्वयं ही ठगा गया। इसीलिए कहते हैंभुवनं वञ्चयमाना, वंचयति स्वयमेव हि । .. -उपदेश प्रासाद अर्थात्-जगत को ठगने का प्रयत्न करने वाला कपटी पुरुष वास्तव में तो अपने आपको ही ठगता है। (२) अब आता है मिथ्यामोह रावण के दूसरे भाई यानी महामोहरूपी रत्नश्रवा के दूसरे पुत्र सम्यक्त्वमोहनीय का नम्बर । यह पुत्र सही मार्ग पर चलता है तथा सच्चे को सच्चा और गलत को गलत ही मानता है। विभीषण ऐसा ही था । उसने सीता-हरण को अन्याय समझा था और इसीलिए नाना प्रकार से रावण को समझाया था कि-'अन्याय मत करो तथा राम की पत्नी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004010
Book TitleAnand Pravachan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1975
Total Pages418
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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