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________________ ७४ आनन्द प्रवचन : सातवाँ भाग १९३८ में चातुर्मास किया था, तब एक कविता बनाई थी। उसी के भाव मै आज आपके सामने रखेंगा और आप स्वयं उन्हें समझकर महाराज श्री की विद्वत्ता और उनकी आगमज्ञान की गंभीरता के कायल हो उठेगे । अभी तो मैं पूज्यश्री अमीऋषि जी महाराज ने उनकी महत्ता बताते हुए जो 'तिलोकाष्टक' लिखा है, उसका एक पद्य आपके सामने रखता हूं । महापुरुषों के जो जीवन-चरित्र लिखे जाते हैं या पद्यों में उनकी गुण-गरिमा बताई जाती है वह हृदय के गद्गद होने पर गद्य अथवा पद्य में स्वयं निर्झरित होती चली जाती है, क्योंकि वह बनावटी नहीं होती । श्रद्धा और भक्ति के आवेग में लिखने वाला व्यक्ति शब्दों के सुन्दर चयन की परवाह नहीं करता और रसालंकारों की ओर भी ध्यान नहीं देता। वह केवल अपने भावों की अभिव्यक्ति करता है, भाषा चाहे जटिल हो या सरल । श्री अमीऋषि जी महाराज ने भी बड़े भाव-भीने शब्दों में जैनागम के अनुरागी और धर्म को प्रकाशित करने वाले स्वर्गस्थ पूज्य श्री त्रिलोकऋषि जी महाराज के संबंध में लिखा हैव्हे गयो जगत जाल पातकतें दूर, शूर, धर्म दया मूलभेद रसनातें के गयो । के गयो अनेक मत आगम के भेद भार, ____ अमत जिन वेन चंद आननतें चे गयो । चे गयो अमर धाम आतम आराम काम, ___घने भव्य जीवन को ज्ञानदान दे गयो। दे गयो सुमत चित्त अमत अखंड सो, तिलोकरिख' स्वामी गुणनामी एक व्हे गयो ।। जगत को आगम का आगम-ज्ञान दान दे जाने वाले उस भव्य महापुरुष की कितनी सहज, सत्य, सुन्दर एवं भाव-विभोर कर देने वाली स्तुति कवि ने की है । और आप अभी देखेंगे कि यह स्तुति यथार्थ है, इसमें तनिक भी अतिशयोक्ति नहीं है। महाकवि श्रद्धेय श्री त्रिलोकऋषि जी महाराज ने राम एवं रावण की कथा को किस प्रकार आध्यात्मिक विषय में घटाया है, यह जानकर आप निश्चय ही चमत्कृत हो उठेगे । .. तो आप उत्सुक हो रहे होंगे अतः मैं श्री त्रिलोकऋषिजी महाराज की कविता के भाव आपके समक्ष रख रहा हूँ और बताने का प्रयत्न करता हूँ कि आध्यात्मिक दृष्टिकोण से हम किसे राम कह सकते हैं ? किसे रावण ? और किस प्रकार राम की विजय को धर्म की अधर्म पर विजय कहा जा सकता है ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004010
Book TitleAnand Pravachan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1975
Total Pages418
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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