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आनन्द प्रवचन : सातवाँ भाग
प्रदान नहीं करता । इसी प्रकार ब्याह-शादियों में, जन्म-दिनों में या व्यापार में लाभ होने पर अथवा दुकान का या मकान का मुहूर्त करने पर आप चाहे लाखों रुपये खर्च कर दें, उससे नवरात्रि में घट के समक्ष बोये हुए घान के समान आपको थोड़ी प्रशंसा तो अवश्य मिल जाएगी; परन्तु अनाज के समान पुण्यरूपी सच्चा लाभ प्राप्त नहीं हो सकता ।
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sefore बन्धुओ ! आपका गौरव इसी में है कि आप अपने आपको संघ का एक महत्त्वपूर्ण स्तम्भ मानकर साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविका जिसको जैसी जरूरत हो, वैसी ही उनकी व्यवस्था करने का प्रयत्न करो तथा दीन-दुःखी एवं असहाय प्राणियों की ओर विशेष ध्यान रखो। यह मत सोचो कि आपके देने से धन खर्च हो जायगा, अपितु यह सोचकर प्रसन्न होओ कि जितना हम दे रहे हैं उससे कई गुना ज्यादा प्राप्त करते जा रहे हैं । किसान बीज थोड़े बोता है किन्तु उनसे अनेक गुना अनाज पुनः हासिल कर लेता है । इसी प्रकार दान बीज है जो असंख्य गुणा बढ़कर पुण्य की प्राप्ति कराता है । लाभ लेने वाले ACT हीं भी हो सकता है पर आपको तो निश्चय ही होगा ।
इसके अलावा आप कम से कम अतिरिक्त धन को भी पुण्य का बीज मानकर इसके रूप में नहीं बोयेंगे तो फिर उसका करेंगे क्या ? साथ तो वह चलेगा नहीं, यहीं रह जाएगा । इसलिए अच्छा यही है कि उसे यहाँ बोकर परलोक में प्राप्त कर लिया जाय ।
इसमें तो धन की
तो धन के विषय में मैंने बताया है और अब यह बताना है कि जिनके पास देने को धन नहीं है वे किस प्रकार संघ की सेवा करें ? तो भाइयो ! अगर धन अधिक नहीं है तो दान न सही, शरीर तो है आपके पास ? इससे जिनका कोई नहीं है उन वृद्धों, रोगियों और अशक्तों की सेवा ही करो। जरूरत ही नहीं है । पर, आप आगे भी कह सकते हैं कि जिनके पास देने को धन नहीं है और स्वस्थ शरीर भी सेवा करने लायक नहीं है वे क्या करें ? उनके लिए भी करने को बहुत है । कम से कम वे संघ के प्रत्येक प्राणी का शुभ सोचें और किसी की निंदा या आलोचना करके लोगों में आपसी फूट न डालते हुए जहाँ फूट या विरोध हो उसे ही मिटाने का प्रयत्न करें और बढ़ावा तो किसी भी हालत में न दें । ये सब बातें छोटी महसूस होती हैं, पर हैं नहीं । अगर व्यक्ति ऐसा करने लग जायँ तो संघ में सर्वत्र अमन-चैन रहे, अशांति और झगड़ों के दर्शन ही न हों ।
जो बन्धु इस बात का ध्यान रखेंगे वे यहाँ पर तो संघ का गौरव बढ़ायेंगे ही, परलोक में भी सुख प्राप्त करेंगे ।
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