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संघस्य पूजा विधि: ३५६
नीचा दिखाने का प्रयत्न करेंगे तथा दरिद्रों और असहायों को भूख-प्यास से बिल- बिलाने देंगे तो फिर इसकी महिमा क्या महिमा रह जाएगी ? नहीं, वह केवल नाम की ही होगी और विष से भरे हुए सुवर्ण कलश के समान कहलाएगी इसका महत्त्व गिर जाएगा और जिस संघ की देवता भी पूजा करते हैं, वह हीन तथा हेय साबित होगा ।
भगवती सूत्र में वर्णन आया है— गौतम स्वामी ने भगवान से प्रश्न किया"भगवन् ! पहले देवलोक के इन्द्र शक्र ेन्द्र और दूसरे देवलोक के इन्द्र ईशानेन्द्र में अगर विवाद हो जाता है तो उनके झगड़े को कौन मिटाता है ?"
भगवान ने उत्तर दिया- " गौतम ! उन दोनों इन्द्रों के विवाद को तीसरे देवलोक का इन्द्र सनत्कुमार आकर शान्त करता है ।"
गौतम स्वामी ने फिर पूछा - "तीसरे देवलोक के इन्द्र का इतना प्रभाव कैसे है ? उन्होंने पूर्व में ऐसी क्या करणी की थी ?"
भगवान ने प्रश्न का समाधान किया- "तीसरे देवलोक के इन्द्र सनत्कुमार ने साधु-साध्वी, श्रावक और श्राविका इन चारों तीर्थों की सेवा की थी।"
इसलिए बन्धुओ ! मैं आपसे कहता हूँ कि अगर आपको अपना जीवन समुन्नत बनाना है तथा शुभ कर्मों का अर्जन करके अपनी आत्मा को पाँचवीं गति मोक्ष में ले जाना है तो चारों तीर्थरूप संघ की सेवा करें | साधु-साध्वियों को उनकी आवश्यकता के अनुकूल साधन प्रदान करें और इससे भी आवश्यक जो कार्य हैं - दीन-दरिद्रों का पोषण, अनाथों की रक्षा और रोग-शोक से पीड़ितों की सेवा; उसमें जुट जाएँ । तभी आपकी और संघ की शोभा बढ़ सकती है ।
संसार में जितने महापुरुष हो गये हैं उनका सर्वप्रथम कार्य 'सेवा' रहा है । सेवा में जितनी शक्ति है उतनी किसी भी प्रकार की साधना या तपस्या में नहीं है । एक छोटा-सा उदाहरण है
सेवा करना मानव का कर्तव्य है
एक सन्त किसी नगर में गये और कुछ दिनों के लिए एक स्थान पर ठहरे । उनके आवास के समीप ही एक दुर्जन और दुराचारी व्यक्ति पहले से रहा
करता था ।
जब तक सन्त वहाँ नहीं आये थे, तब तक उसे स्वतन्त्रता थी और उसका घर जुए का मदिरापान का तथा दुराचार का अड्डा बना हुआ था । किन्तु संत के समीप ही आकर ठहर जाने से लोग दिन-रात उनके दर्शनार्थ आने लगे तथा
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