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३०६ आनन्द प्रवचन : सातवां भाग
कहलवाने लगते हैं । पर सोचा जाय कि उनमें गुरु बनने के लक्षण हैं या नहीं तभी पहचान हो सकती है और वे सच्चे गुरु कहला सकते हैं । योगशास्त्र में गुरु के लक्षण इस प्रकार बताये गये हैंमहाव्रतधरा, धीरा, भैक्षमात्रोपजीविनः । सामायिकस्था धर्मोपदेशका गुरवो मतः ॥
अर्थात् — अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य एवं अपरिग्रह, इन पाँचों महान्व्रतों का पालन करने वाले, धैर्यवान, शुद्ध भिक्षा से जीवन-निर्वाह करने वाले, संयम में स्थिर रहने वाले तथा सच्चे धर्म का उपदेश देने वाले महात्मा गुरु माने गये हैं ।
बन्धुओ, इन लक्षणों की कसौटी पर कसकर ही हम जान सकते हैं कि गुरु कहलाने की क्षमता किसमें है । आज हम देखते हैं कि अनेक शहरों में बड़ेबड़े मन्दिर हैं और उनमें महन्त होते हैं। लोग उन्हें गुरु मानकर पूजते हैं । किन्तु उनका जीवन कैसा होता है ? मन्दिरों में आने वाला अपार द्रव्य एवं भोग आदि का भंडार उनके हस्तगत रहता है अतः बड़े ठाट-बाट से वे अपने पत्नी, पुत्र एवं पौत्रादि का पालन करते हैं तथा सम्पूर्ण भोग-विलास के साधनों से युक्त विशाल भवनों में बिना किसी प्रकार का कष्ट उठाये आनन्दपूर्वक निवास करते हैं । त्याग के नाम पर वहाँ शून्य होता है तथा क्रोध, मान, माया एवं लोभादि कषायों में कमी नहीं रहती । क्या हम उन्हें सच्चे गुरु मान सकते हैं ? नहीं, गुरु उसे ही कहा जा सकता है जो — 'आप तिरे औरन को तारे ।' तो जो गुरु स्वयं ही मोह-माया में लिप्त रहते हैं, वे स्वयं कैसे भव-सागर पार कर सकते हैं तथा दूसरों को पार उतारने में सहायक बन सकते हैं ? ऐसा कभी नहीं हो सकता । जबकि गुरु और चेले, दोनों को ही धन, माल खेती बाड़ी, व्यापार-धन्धा करना है तथा पत्नी एवं पुत्रादि की इच्छा रखनी है तो कैसे गुरु तैरेंगे और किस प्रकार अपने चेलों को तैरायेंगे ? यह तो वही बात हुई कि एक खम्भे से एक व्यक्ति बँधा है और दूसरे खम्भे से दूसरा । क्या वे एक-दूसरे को बन्धन मुक्त कर सकते हैं ? नहीं, दोनों ही तो बँधे हैं, फिर कौन किसको मुक्त करेगा ? इसी प्रकार तृष्णा, इच्छा एवं आशा के नागपाश में जब गुरु और चेले बँधे रहते हैं तो न गुरु ही चेलों को कर्म- मुक्त कर सकते हैं और न चेले गुरु को ।
गुरुजी विचार करते हैं— मेरे धनी भक्तों का गाँव है और यहाँ मैंने चार महीने कथा सुनाई है अतः पाँच सौ रुपये तो दक्षिणा में मिलेंगे ही।" उधर चेला सोचता है- “इन दिनों दुकान में कमाई नहीं हो रही है और महाराज
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