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आनन्द प्रवचन : सातवाँ भाग
'अन्धादयं महानन्धो विषयान्धीकृतेक्षणः' ॥ अर्थात्-विषयान्ध व्यक्ति अंधों में सबसे बड़ा अंधा है।
तो रथनेमि भी विषय-लालसा के कारण अंधा हो गया था और इसीलिए उसने मातृवत राजुल से भोगों को भोगने में साथ देने की इच्छा प्रकट की।
राजुल प्रथम तो रथनेमि के इस प्रस्ताव से चकित हो गई, किन्तु कुछ सोच-विचार कर उसने उत्तर दिया
"आप कल मेरे लिए एक सर्वोत्तम पेय-पदार्थ लेकर आइयेगा, उसके बाद मैं आपको उत्तर दूंगी।"
रथनेमि यह सुनकर अत्यन्त प्रसन्न हुआ और विचार करने लगा"निश्चय ही राजुल मेरी बात मानेगी, अन्यथा मेरे द्वारा स्वादिष्ट पेय पदार्थ क्यों मँगवाती ?"
अगले दिन बहुत सोच-विचार के पश्चात् उसने रत्न जड़ित कटोरे में पिस्ता केसर, इलायची आदि मिला हुआ दूध लिया और उसे लेकर राजुल के समीप आया। राजुल ने हर्ष का प्रदर्शन करते हुए सुगंधित दूध के कटोरे को हाथ में लिया और कुछ समय पूर्व ली हुई वमन-कारक औषधि के प्रभाव से दूध पीकर तुरन्त ही उसी कटोरे में वमन कर दिया।
तत्पश्चात् वह रथनेमि से बोली-“अब आप इसे पी लीजिए।"
राजुल की यह बात सुनकर रथनेमि क्रोध से भर गया और बोला- "मेरा अपमान करती हो, तुम ? आखिर मैं एक राजकुमार हूँ। क्या वमन किया हुआ दूध पीऊँगा ?"
राजुल हँस दी और कहने लगी-“राजकुमार! आप अपने भाई की वमन की हुई अर्थात् छोड़ी हुई पत्नी को ग्रहण कर सकते हैं तो भला मेरा वमन किया हुआ दूध क्यों नहीं पी सकते ? आप तो मुझे बहुत प्यार करते हैं न ?"
रथनेमि स्तब्ध रह गया। उसे कोई उत्तर राजुल की बात का नहीं सूझा । इस पर राजुल ने उसे समझाते हुए कहा
"भाई ! प्रथम तो मैं आपके भाई की पत्नी हूँ भले ही उन्होंने मेरे साथ अग्नि के फेरे नहीं लगाये । तब भी मैं अन्य किसी का वरण नहीं कर सकती। दूसरे आप से मेरा यही कहना है कि शरीर के सौन्दर्य को देखकर विकारग्रस्त हो जाना बुद्धिमानी नहीं है। इस शरीर में है क्या ? केवल अशुचि और अपवित्रता होती है । अभी आपने देखा कि दूध पीकर कुछ क्षणों में बाहर निकलते ही वह कैसा दुर्गन्धिपूर्ण एवं घृणित हो गया । वह क्यों ? इस सुन्दर शरीर
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