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गोहं नत्थ मे कोई
,
दुर्लभ मानवभव मिला कर एकत्व विचार । कैसे होगा अन्यथा, तेरा आत्मोद्धार ?
पद्यों का अर्थ बड़ा सरल और प्रभावपूर्ण है । इसमें यही कहा गया है"अरे भाई ! जरा विचार कर कि यह जीव अपने साथ धन-वैभव, राज्य-पाट, हाथी-घोड़े और अपना परिवार इनमें से क्या साथ लेकर आया था ? कुछ भी नहीं । और साथ में क्या ले जाएगा ? इसका उत्तर भी यही है—कुछ नहीं । तो फिर तू एकत्व भावना को क्यों नहीं भाता ? जरा विचार कर कि यह भावना हृदय की गहराई में उतारे बिना तेरा आत्मोद्धार कैसे होगा ?
बन्धुओ, यहाँ ध्यान में रखने की बात यही है जो मैं अभी आपको बता रहा था कि आत्म-कल्याण के लिए सर्वप्रथम मन में एकत्व पर विचार करना चाहिए। यानी इस भावना को सच्चाई से मानस में जमाना चाहिए । अन्यथा न जीव कर्मों से डरेगा और न ही आत्म-साधना में जुट सकेगा । भावना वह
है, जिसके अन्तर्मानस में बो देने पर धर्म रूपी वृक्ष पनपेगा तथा तप, त्याग, संयम एवं साधना रूपी अनेक डालियों से विकसित होता हुआ मोक्ष रूपी मधुर फल प्रदान करेगा ।
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मिराय एक बार भयंकर दाह ज्वर से पीड़ित हो गये । हकीम और वैद्य उनका उपचार कर-करके थक गये पर उनके शरीर की वेदना शांत नहीं हो सकी । अन्त में सभी ने एकमत होकर कहा - " बावनगोशीर्ष चन्दन STI प करने से महाराज का दाह ज्वर शान्त हो सकेगा ।"
यद्यपि महल में सैकड़ों दास-दासी थे जोकि चन्दन घिस सकते थे, किन्तु राजा की पतिपरायणा रानियों ने स्वयं ही यह कार्य करने का निश्चय किया और तत्काल ही चन्दन घिसने लगीं । पर चन्दन घिसते समय उनके हाथों के कंगन और चूड़ियाँ बजने लगे । व्याधिग्रस्त राजा को उनकी आवाज भली न लगी और वे व्याकुलतापूर्वक बोले- "यह आवाज मुझे कष्ट पहुँचा रही है ।"
रानियों ने यह सुनते ही अविलम्ब सब कंगन खोल दिये । केवल सौभाग्य का चिह्न मानकर एक-एक कंकण हाथ में रखा । चन्दन घिसा जा रहा था, पर कंकणों का शब्द बन्द हो गया ।
जब राजा को आवाज सुनाई देनी एकदम बन्द हो गई तो उन्होंने आश्चर्य से पूछा - "क्या चन्दन घिसा जाना रुक गया ?"
रानियों ने उत्तर दिया- "नहीं महाराज ! चन्दन तो हम घिस रही हैं, पर हाथों में अब एक-एक ही कंकण रखा है अतः इनकी सम्मिलित आवाज, जो आपको कष्ट पहुँचा रही थी, वह मिट मई है ।"
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