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गोहं नत्थ मे कोई २०७
सोलन सच्चा कवि था और सच्चे कवि बिना किसी भय या डर के सच्ची बात अविलम्ब कह देते हैं, चाहे उसका फल मृत्यु ही क्यों न हो । आपने सुना होगा कि बादशाह औरंगजेब ने एक बार कवि भूषण से कविता में अपने गुणों का वर्णन करने के लिए कहा। पर जैसा कि मैंने अभी बताया, कवि किसी से sed नहीं । भूषण ने भी औरंगजेब के गुणों के साथ सम्पूर्ण अवगुणों का भी वर्णन कर दिया । परिणामस्वरूप बादशाह कुपित हुआ और उसने उसकी राज्य से मिलने वाली सहायता बन्द करते हुए बहुत अनादर किया ।
इसी प्रकार गंग कवि का भी हाल हुआ था । गंग कवि से बादशाह अकबर ने कहा - "गंग ! तुमने वर्षों मेरे पास रहते हुए नाना विषयों को लेकर कविताएँ लिखीं, किन्तु कभी मेरी प्रशंसापूर्ण कविता नहीं बनाई । अतः अब एक ऐसी कविता लिखो, जिसके अन्त में यह अवश्य आए - " सब मिल आस करो अकबर की ।"
गंग कवि स्वीकारोक्ति में सिर हिलाता हुआ चल दिया और कुछ समय बाद एक लम्बी कविता लिख लाया । कविता में वादशाह की बहुत प्रशंसा की गई थी पर अन्त में यह लिखा था-
कवि गंग तो एक गोविन्द भजे, वह संक न माने जब्बर की । जिनको न भरोसा हो उसका, सब आस करें वे अकब्बर की ।।
यद्यपि कविता में भगवान के बाद दूसरा नम्बर गंग ने अकबर को दिया था और कहा था- - जिन्हें भगवान पर भरोसा न हो वे तो अवश्य ही बादशाह अकबर के आश्रय की आकांक्षा करें। क्या यह यथार्थ नहीं था ? निश्चय ही अकाट्य सत्य था कि भगवान सर्वोपरि हैं और जगत के सम्पूर्ण प्राणियों को आश्रय देने वाले हैं । किन्तु उन पर विश्वास न हो तो फिर लोग अकबर बादशाह की सहायता की अपेक्षा रखें । पर गंग कवि के सत्य पर भी अकबर आग-बबूला होकर उसे हाथी के पैरों तले कुचलवा दिया। गंग भी ऐसी ही सजा की अपेक्षा रखता था अतः हँसते-हँसते मर गया ।
इन उदाहरणों से मेरा अभिप्राय यही है कि कवि लोग किसी का लिहाज करके असत्य नहीं लिखते और न कहते ही हैं, चाहे उसका परिणाम कुछ भी क्यों न हो । सोलन भी कवि था अतः असत्य कहकर कारू राजा को रिझाने का प्रयत्न कैसे करता ? उसने कारू के यह कहने पर कि - 'मेरी असीम सम्पत्ति की प्रशंसा करो ।' स्पष्ट कह दिया
"महाराज ! धन-वैभव की क्या प्रशंसा करूँ ? यह आज है, कल नहीं । आप आज इसके कारण स्वयं को महाशक्तिशाली मानते हैं पर कल इसके न
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