________________
१६२
आनन्द प्रवचन : सातवाँ भाग
हाथी और घोड़े थे, सुन्दर एवं पतिव्रता पत्नी तथा माता-पिता, बंधु - मित्र सभी थे किन्तु उस युवा अनाथी मुनि की व्याधिग्रस्त अवस्था में कोई भी सहायक नहीं बन सका, यानी कोई भी उन्हें रोग मुक्त नहीं कर सका तो फिर अभाव ग्रस्त एवं तुच्छ व्यक्तियों के लिए तो कहना ही क्या है ?"
वस्तुतः संसार का कोई भी व्यक्ति और धन का सुमेरु भी प्राणी को शरण देकर काल से उसकी रक्षा नहीं कर सकता । जन्म-मरण से बचाने वाला केवल धर्म और कालजयी अरिहन्त हैं । जैसा कि पं शोभाचन्द्र जी भारिल्ल ने कहा है—
चार घातिया कर्मों का जिनने संहार किया है ।
मोह अन्ध जीवों को जिनने धर्म प्रदीप दिया है ॥ जो सर्वज्ञ विश्व उपकारक, इस जग के तारक हैं । वे अरिहन्त देव अशरण के शरण मृत्युहारक हैं ॥ इसलिए बंधुओ हमें अरिहन्त प्रभु की शरण लेकर उनके द्वारा प्रदत्त धर्म - दीपक के प्रकाश में चलना है ताकि कभी भटक सकें ।
संत तुकारामजी भी कहते हैं
"तुका म्हणे तुज सोडवेता कोणी,
एका चक्रपाणी वाचूनिया ।"
अर्थात् — एक भगवान सुदर्शन चक्रधारी श्री कृष्ण के अलावा तुझे कोई भी छुड़ाने में समर्थ नहीं है ।
तात्पर्य यही है कि धर्म के अलावा इस संसार में कोई भी शरणदाता नहीं है अतः इसी की शरण प्रत्येक मुमुक्ष को लेनी चाहिए ।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org