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________________ १८८ आनन्द प्रवचन : सातवाँ भाग उसके बाद का समय उन्हें भोगने में जायेगा । इस प्रकार इहलोक और परलोक दोनों ही बिगड़ जाएँगे। पाश्चात्य विद्वान हैरिक ने कहा है"That man lives twice who lives the first well." यानी-जो व्यक्ति अपनी पहली आयु को सदाचार, संयम एवं धर्ममय बनाकर सुन्दर ढंग से जीता है, वही दुबारा भी चैन से रह सकता है । यथापिछली आयु अर्थात् वृद्धावस्था अगर प्राप्त हो गई तो भी वह संतुष्टि और शांति से उसे व्यतीत कर सकता है और वह न भी रही तो अगले लोक में शुभ-कर्मों के फलस्वरूप सुख की प्राप्ति करता है। इसलिए जीवन के मिले हुए क्षणों का प्रत्येक व्यक्ति को सदुपयोग करते चलना चाहिए। कोई भी शुभ-कार्य आगे के लिए स्थगित करना बुद्धिमानी नहीं है, क्योंकि अगला समय आएगा ही, यह कौन जानता है ? हमारे शास्त्र कहते हैं - जं कल्लं कायव्वं, णरेण अज्जेव तं वरं काउं । मच्चू अकलुणहिअओ, न हु दीसइ आवयंतो वि ॥ तूरह धम्म काउं, मा हु पमायं खयं वि कुग्वित्था । बहु विग्यो हु मुहुत्तो, मा अवरण्हं पडिच्छाहि ॥ -वृहत्कल्पभाष्य इन दो गाथाओं के द्वारा मानव को कितना हृदयस्पर्शी एवं मार्मिक उद्बोधन देते हुए कहा गया है___जो शुभ काम कल करना चाहते हैं, उसे आज ही कर लेना अच्छा है। मृत्यु अत्यन्त निर्दय है, यह कब आकर दबोच लेगी, कोई नहीं जान सकता, क्योंकि यह आते हुए दिखाई नहीं देती।" दूसरी गाथा में भी पुनः कहा है-"धर्माचरण करने के लिए शीघ्रता करो, एक क्षण का भी प्रमाद मत करो। जीवन का एक-एक क्षण विघ्नों से भरा है, इसमें तो सायंकाल तक की भी प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिए।" इसी विषय पर एक छोटा-सा उदाहरण हैचिन्ता किस बात की ? एक धनी सेठ था और उसके एक ही इकलौता पुत्र था। सेठ के लाखों का व्यापार था और वह सदा उसमें व्यस्त रहता था । किन्तु सेठानी बड़ी धर्म परायणा थी और अपना जीवन यथा-शक्य धर्म-क्रियाओं में व्यीतत करती थी। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004010
Book TitleAnand Pravachan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1975
Total Pages418
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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