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________________ आनन्द प्रवचन: सातवाँ भाग वस्तुतः जब मृत्यु काल आता है, कोई भी दवा और कैसा भी उपचार कारगर नहीं होता । स्वजन - सम्बन्धी रोते-धोते हैं, शोक करते हैं किन्तु व्यक्ति को व्याधियों के चंगुल से नहीं बचा पाते । १८६ पैसे वाले व्यक्ति अपने पुत्र के बराबर धन भी कई गुना बड़ा ढेर लगाकर अपने बेटे को रहते हैं । अनाथी मुनि के लिए भी यही हुआ । था । नाम के अनुसार ही उन्होंने अपार सम्पत्ति अपने पुत्र को व्याधि- मुक्त करने के लिए उन्होंने पैसा पानी की तरह बहाया और वैद्य-हकीमों की कतार लगा दी, किन्तु पैसा रोग नहीं मिटा सकता था अतः नहीं मिटा पाया। कहा भी है तौलकर देना चाहें, या उससे बचाना चाहें, तब भी असफल उनके पिता का नाम धनसंचय एकत्रित भी कर रखी थी । अक्षय धन परिपूर्ण खजाने शरण जीव को होते । तो अनादि के धनी सभी इस भूतल पर ही होते ॥ अर्थ स्पष्ट है कि धन अगर जीव को शरण देकर व्याधि- मुक्त कर सकता या कि मृत्यु से बचा सकता तो अनादि काल से जो कुबेर के समान धनी, चक्रवर्ती और तीन खण्डों के अधिपति हो चुके हैं, वे इस पृथ्वी को छोड़कर जाते ही क्यों ? अपने अथाह धन के बल पर वे समस्त रोगों को और मृत्यु को जीत लेते। पर ऐसा कभी नहीं हो सका है, क्योंकि धन कितना भी अधिक क्यों न हो, वह जीव को शरण नहीं दे सकता । अनाथ मुनि ने भी जब देखा कि मैं किसी भी उपाय से रोग मुक्त नहीं हो रहा हूँ तो उन्होंने मन ही मन धर्म की शरण ली तथा विचार किया"अगर मैं इस रोग से मुक्त हो जाऊँगा तो क्षमावान, इन्द्रियों का दमन करने वाला तथा आरम्भ-समारम्भ रहित अनगार धर्म को धारण करूँगा ।" आश्चर्य की बात है कि ज्योंही उनके मन ने ऐसी धारणा की, त्योंही रोग घट चला और एक रात में ही वे स्वस्थ हो गये । धर्म का कैसा अद्भुत प्रभाव और चमत्कार था । इसीलिए पं० शोभाचन्द्र जी भारिल्ल ने भी 'अशरण भावना' के अन्तर्गत लिखा है कालजयी प्रभु साधु और जिन धर्म पूर्ण भयहारी । ले इनका शुभ शरण यही हैं अनुपम मंगलकारी ॥ भव -अरण्य में है शरण्य इनके अतिरिक्त न दूजा । मन-मन्दिर में इनकी करले शुद्ध हृदय से पूजा || Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004010
Book TitleAnand Pravachan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1975
Total Pages418
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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