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________________ १७६ आनन्द प्रवचन : सातवाँ भाग बनी रहती है और समय की भी जिसे कद्र होती है । महात्मा गाँधी से एक बार किसी ने कहा " आप दिन-रात कुछ न कुछ करते हुए व्यस्त रहते हैं, जबकि आपको अब कुछ अधिक विश्राम करके शरीर को स्वस्थ रखने का प्रयत्न करना चाहिए ।" गाँधीजी उस व्यक्ति की बात का उत्तर देते समय भी किन्हीं जरूरी कागजों को छाँटते हुए बोले - "भाई ! शरीर को विश्राम देने से क्या होगा ? यह तो ठीक वक्त पर जाएगा ही, फिर मैं इन मिले हुए जीवन के कुछ क्षणों को निरर्थक क्यों जाने दूँ ? मुझे तो एक पल भी व्यर्थ जाने देना अच्छा नहीं लगता ।" 'कीमत बढ़ती जायगी !' इसी प्रकार का उदाहरण मिस्टर फ्रेंकलिन का है । उनके हृदय में भी समय का मूल्य महान् था । एक बार वे अपनी पुस्तकों की दुकान के भीतरी कार्यालय में पत्र के सम्पादन में निमग्न थे । उस समय एक व्यक्ति दुकान में आया और काफी देर खोज-बीन करके एक पुस्तक लेने के लिए छाँटी । तत्पश्चात् उसने दुकान के कर्मचारी से पूछा - " इस पुस्तक की क्या कीमत है ?" क्लर्क ने उत्तर दे दिया – “एक डालर ।" इस पर वह क्लर्क से पुस्तक के दाम कुछ कम करने का आग्रह करने लगा किन्तु वह नहीं माना । इस पर व्यक्ति ने पूछा - " क्या फ्रेंकलिन इस समय अन्दर हैं ?" " जी हाँ, वे कार्यालय में काम कर रहे हैं ।” कर्मचारी ने उत्तर दिया । व्यक्ति बोला - " तनिक उन्हें बुला लाओ !" क्लर्क अन्दर गया और फ्रेंकलिन को बुला लाया। ग्राहक ने उनसे कहा“मिस्टर फ्रेंकलिन ! इस पुस्तक के कम से कम दाम आप क्या लेंगे ?" उत्तर मिला - "सवा डॉलर ।" " वाह ! आपके क्लर्क ने तो अभी इसका मूल्य एक डॉलर बताया था आप सवा डॉलर कह रहे हैं ?" फ्रेंकलिन ने चटपट उत्तर दिया- " इसका मूल्य एक डॉलर ही है पर आपने मेरे काम में हर्ज करके समय बिगाड़ा है अतः अब सवा डॉलर हो गया ।" Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004010
Book TitleAnand Pravachan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1975
Total Pages418
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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