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जाए सखाए निक्खन्ते १६३ और कोई वृक्ष के पत्तों पर ही जीवन चलाता था। किन्तु ऐसे घोर तपस्वी भी स्त्री का सुन्दर मुख देखते ही विकार-ग्रस्त होकर अपनी तपस्या या साधना से विचलित हो गये । ऐसी स्थिति में घी, दूध एवं दही से युक्त 'शालि' यानी चावलों को खाने वाले तथा अन्य पौष्टिक पदार्थों का सेवन करने वाले अगर अपनी इन्द्रियों का दमन करलें, तब तो विन्ध्याचल पर्वत ही जल में तैरने लग जाय । तात्पर्य यह है कि रूखा-सूखा एवं निस्सार पदार्थ ग्रहण करने वाले भी जब विकारों पर विजय प्राप्त नहीं कर पाते तो पौष्टिक भोजन करने वाले कैसे उन्हें जीत सकते हैं ?
बन्धुओ, इस श्लोक के अर्थ को ध्यान से समझना चाहिए। इसमें यही भाव दर्शाया है कि साधारण व्यक्ति तो सांसारिक भोग-विलासों के बीच रहता है, इन्द्रियों की तृप्ति में जुटा रहता है साथ ही पौष्टिक आहार ग्रहण करता हुआ आनन्द से जीवनयापन करता है अतः उसके पतित होने में कोई बड़े आश्चर्य की बात नहीं है। किन्तु जो साधक शरीर-सुख को त्याग कर साधना के पथ को अपना लेता है तथा घोर तपस्या में जुट कर कर्मों का क्षय करने में संलग्न हो जाता है; वह कठिन व्रतों का धारक, अगर संयम, साधना या अपने तप-मार्ग से विचलित होकर पतन की ओर अग्रसर होने लगता है तो अत्यन्त आश्चर्य एवं खेद की बात होती है। हानि भी उसी की अधिक होती है क्योंकि वह बहुत कुछ पाकर उसे खोता है।
इसीलिए भगवान ने वैसे तो सभी व्यक्तियों को, जोकि संसार से मुक्त होने की इच्छा रखते हैं, दर्शन परिषह पर विजय प्राप्त करने की प्रेरणा दी है लेकिन जो साधु मुक्ति की केवल कामना ही नहीं रखते अपितु मुक्ति-प्राप्ति के मार्ग पर चल पड़े हैं और काफी आगे बढ़ भी गये हैं, उन्हें तो पूर्णतया आदेश दिया है कि वे अपने मन को तनिक भी विचलित न होने दें, अश्रद्धा को मानस में प्रवेश न करने दें तथा भगवान के वचनों पर स्वप्न में भी सन्देह न करें। जो ऐसा करते हैं वे ही यह विचार मन में लाते हैं कि-'जिन हुए हैं, जिन हैं और भविष्य में भी जिन होंगे यह सर्वथा मिथ्या बात है।'
ज्ञान की तरतमता __ अभी मैंने आपको बताया था कि जिन या केवलज्ञानी अनुमानादि प्रमाणों से स्वतःसिद्ध हैं अतः उनके अस्तित्व में शंका करने की आवश्यकता ही नहीं है। वैसे भी हम वर्तमान में जो व्यक्ति हैं उनके ज्ञान की तरतमता को देखकर अंदाज लगा सकते हैं कि इसकी अन्तिम सीमा भी अवश्य होगी।
इस संसार में अनेकानेक मानव हैं और हम देखते ही हैं कि ज्ञानावरणीय
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