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आनन्द प्रवचन : सातवां भाग
दशका
को तो अशुभ समझकर लोग अपने बालकों के लिए भी उपयोग में नहीं लाते । इस बात की यथार्थता को आप समझते ही होंगे । क्या कभी किसी व्यक्ति ने अपने पुत्र का नाम रावण, कंस या दुर्योधन रखा है ? नहीं, वह इसीलिए कि इन नामों वाले व्यक्ति अधर्मी थे । ___ तो मैं आपको बता तो यह रहा था कि धर्म ही व्यक्ति, समाज और राष्ट्र के लिए मंगलमय है अतः प्राचीनकाल में श्रेष्ठ राजा अपने धर्म गुरुओं से उपदेश ग्रहण करके तथा धर्म के मर्म को समझ करके ही अपनी शासन-प्रणाली निर्धारित करते थे।
भगवान महावीर के समय में राजा श्रेणिक मगध पर राज्य करते थे। वे भगवान महावीर के अनन्य उपासक थे तथा उनके मार्ग-दर्शन से ही राज्य चलाते थे । भगवान पर उनकी अविचलित श्रद्धा थी और वे केवल यही विचार करते थे कि महावीर प्रभु का उपदेश कभी भी राजा या राज्य के लिए अहितकर नहीं हो सकता। यह बात सत्य भी है, जैसा कि कहा गया हैदेशकालानुरूपं धर्म कथयन्ति तीर्थकराः।
-उत्त० चूर्णि २३ अर्थात् तीर्थंकर देश और काल के अनुरूप ही धर्म का उपदेश करते हैं । __ तो श्रेणिक भगवान महावीर के उपदेशानुसार चलते थे और श्रीकृष्ण भगवान अरिष्टनेमि जो कि बाईसवें तीर्थंकर थे, उनके द्वारा उद्बोधन प्राप्त करते थे । रामचन्द्रजी ने वसिष्ठ ऋषि के धर्म-बोध को हृदयंगम किया था तथा ग्यारहवीं सदी में राजा कुमारपाल को श्री हेमचन्द्राचार्य ने धर्म एवं नीति की शिक्षा दी थी। इसके पश्चात् करीब तीन सौ वर्ष पूर्व ही छत्रपति शिवाजी भी जो कि इतिहास-प्रसिद्ध व्यक्ति हुए हैं उन्होंने अपने गुरु समर्थ रामदास स्वामी के उपदेशानुसार शासन किया था। कानून और धर्म ___कहने का अभिप्राय यही है कि पुरातन समय से ही राज्य का अगर उत्तम संचालन हुआ है तो वह तभी हो सका है, जबकि वह धर्ममय बना । आप स्वयं अनुभव कर सकते हैं कि प्राचीनकाल से आजतक भी राज्य के जो कायदे-कानून होते हैं वह धर्म के आधार पर ही निर्मित होते हैं। चोरों को सजा देने का जो नियम है वह इसलिए कि चोरी करना पाप है, हत्यारों को दण्ड देने का नियम इसलिए है कि किसी की हत्या करना हिंसा है और वह महापाप है। धोखेबाजी से किसी की जमीन-जायदाद हड़प लेने पर जो कारावास
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