SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 153
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १० का वर्षा जब कृषि सुखानी धर्मप्रेमी बंधुओ, माताओ एवं' बहनो ! बड़े हर्ष की बात है कि स्थानकवासी जैन समाज संगठित हो, इसके लिए हमारे अग्रगण्य महानुभावों ने एक अधिवेशन करने की योजना बनाई है। संगठन का महत्त्व परिवार, समाज और देश के लिए अत्यधिक ही नहीं, अनिवार्य है, क्योंकि इसके अभाव में न तो परिवार का, न समाज का और न ही देश का कोई कार्य सुचारु रूप से सम्पन्न हो सकता है । असंगठित रूप से काम करने में अत्यन्त कठिनाई होती है और कभी-कभी तो काम हो भी नहीं पाता, किन्तु वही कार्य संगठित रूप से किये जाने पर सहज ही पूरा हो जाता है । इसीलिये समाज के अग्रणी व्यक्तियों ने संगठन की जो योजना बनाई थी उसका यह प्रथम अधिवेशन होना तय हुआ है । अधिवेशन का आयोजन करने से सबसे बड़ा लाभ यह होता है कि सहज ही लोगों के विचारों का पता लग जाता है तथा किस विषय में लोगों का बहुमत है यह जान लिया जाता है। अधिवेशन का उद्देश्य समाज का, धर्म का और देश का हित हो वह उपाय करना होता है। जैसे-जैसे समय बदलता है, देश और समाज की परिस्थितियाँ तथा व्यक्तियों की विचारधाराएँ भी परिवर्तित होती जाती हैं । ऐसी स्थिति में नीति एवं धर्म की मर्यादाओं को सुरक्षित रखते हुए किस प्रकार समाज की व देश की उन्नति होती रहे, यही संगठन और उसके लिए किये जाने वाले अधिवेशनों का उद्देश्य होता है । धर्म एवं नीति को ध्यान में रखते हुए समाज का व्यवहार चले तभी वह यशस्वी बन सकता है और इसके सदस्यों का यानी व्यक्तियों का जीवन उत्तम बनता है । अतः धर्म तथा नीति की भावनाओं को समाज का प्रत्येक सदस्य अपनाए और उनकी मर्यादाओं का उल्लंघन न करता हुआ अपने जीवन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004010
Book TitleAnand Pravachan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1975
Total Pages418
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy