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अपराधी को अल्पकाल के लिए भी छुटकारा नहीं होता १२५
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रहे हैं । पार्टी में उपस्थित सभी अन्य लोगों को अपने मांस भक्षण पर बड़ी लज्जा महसूस हुई ।
कि स्वयं सुख का
भी प्रकार से दुःख
कहने का अभिप्राय यही है कि प्रत्येक प्राणी को जो अनुभव करना चाहता है, किसी भी अन्य प्राणी को किसी नहीं देना चाहिए। न उसे किसी की हत्या करनी चाहिये, न किसी को बंधन में रखना चाहिये, न मार-पीट करनी चाहिये और न ही कटु शब्दों के द्वारा अथवा मन से भी किसी का अहित न करना या सोचना चाहिये। दूसरे के मन को दुखाने वाली प्रत्येक क्रिया हिंसा है अतः उससे बचने का प्रयत्न करना चाहिये । धर्मशास्त्र में कहा भी है
सव्वे पाणा, सव्वे भूया,
सव्वे जीवा, सव्वे सत्ता,
न हंतव्वा, न अज्जावेयव्वा,
न परिघेतव्वा, न परियावेयव्वा
न उद्दवेयव्वा ।
इत्थं विजाणह नत्थित्थ दोसो आरियवयणमेयं ।
- आचारांग सूत्र १ | ४|२
अर्थात् - किसी भी प्राणी, किसी भी भूत, किसी भी जीव और किसी भी सत्व को न मारना चाहिये, न उन पर अनुचित शासन करना चाहिये, न पराधीन बनाना चाहिये, न किसी प्रकार का परिताप देना चाहिये और न ही किसी प्रकार का उपद्रव करके उन्हें सताना चाहिये ।
ऐसे अहिंसा धर्म में किसी तरह का दोष नहीं है, यह सदा ध्यान में रखना चाहिये | अहिंसा एक महान् और आर्य सिद्धान्त है ।
इसके अलावा ध्यान में रखने की बात तो यह है कि अन्य भी कोई धर्म हिंसा की प्रेरणा नहीं देता अपितु समस्त धर्म अहिंसा पर ही जोर देते हैं । हिन्दू धर्म तो हिंसा को महा पाप मानते ही हैं, इस्लाम धर्म का कुरान भी हिंसा को त्याज्य बताते हुए कहता है
वल्लाहो ला
मुहब्बुल
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जालमीन ।
- सूरत आाल इमरान, ६-३
अलाइनज्जालमीन की अजाबिन मुकीम ।
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-सूरत सूरा, ५-२
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