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आनन्द प्रवचन : सातवाँ भाग
या द्वेष की भावना हुई, कर्म बँध गये, थोड़ा भी अपने धन-जन का अहंकार मन में आया कि कर्म बँधते चले, व्यापार में थोड़ा भी झूठ बोला, धोखा दिया या छोटी-सी वस्तु के लिए बेईमानी की और पाप कर्म चुपके से आ गये जिनका आपको पता भी नहीं चला । पता चले भी कैसे ? वे सूचना देकर या ढोल बजाकर तो आते नहीं, वे तो चोरों की अपेक्षा भी अधिक सावधानीपूर्वक और अदृश्य रूप से आते हैं तथा आत्मा पर चढ़ते चले जाते हैं । इस पर भी भोले व्यक्ति उनके आगमन से अनजान रहकर कहते हैं - 'हम पाप नहीं करते ।' बंधुओ, आप जानते हैं कि बालक विष की पहचान नहीं कर सकता अतः अगर उसे विष की डली दे दी जाय और वह अपनी अज्ञानता के कारण उसे खा ले, तो क्या वह मरेगा नहीं ? अवश्य मरेगा । इसी प्रकार पापों की बारीकी को न समझने वाला व्यक्ति उन्हें आत्मा पर आच्छादित होते हुए अपनी अज्ञानता के कारण न देख पाए, तो भी उन सबका फल तो भोगना ही पड़ेगा । इसीलिये आवश्यक है कि पुण्य और पाप के भेद को समझा जाय तथा पापों का सूक्ष्मता से ज्ञान करके उनसे बचा जाय । पापों के उपार्जन में अज्ञानपने का बहाना नहीं चल सकता, जिस प्रकार अज्ञानपने से खाया विष मृत्यु को नहीं रोक पाता। आगे कहा है
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तूने कितनी चीनी खाई, कितनी खा गया मिठाई, फिर भी जीभ से तू भाई, जहर बिलो रहा है क्यों ?
पद्य में बड़ा मनोरंजक दृष्टांत दिया है। कहा है- 'तूने जीवन में कुछ सेर या कुछ मन ही नहीं वरन् अब तक तो न जाने कितनी शक्कर और मिठाई खाई होगी, पर क्या इतना मीठा खाने पर भी तेरी जबान पर थोड़ी भी मिठास नहीं आई ? जब भी बोलता है, मानो विष ही उगलता है ।'
Start का यही जहर तो नाना प्रकार के झगड़ों का कारण बनता है तथा भयानक संघर्षों को जन्म देता है । इसलिए सभी मत-मतान्तर और धर्म-ग्रन्थ मधुर भाषण पर जोर देते हैं तथा कटु वचनों के द्वारा किसी भी प्राणी का मन दुखाने को पाप मानते हैं । जो विवेकी और बुद्धिमान पुरुष होता है वह प्रथम तो अनावश्यक वचनों का प्रयोग ही नहीं करता, आवश्यक होने पर ही बोलता है, किन्तु जब भी बोलता है ऐसी वाणी का प्रयोग करता है जिसे सुन - कर श्रोताको तनिक भी खेद न हो, अपमान महसूस न हो और तिरस्कार का भी आभास न हो सके ।
Part क प्रकार की कसौटी भी है, जिस पर कसे हुए व्यक्ति के व्यक्तित्व
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