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________________ अपराधी को अल्पकाल के लिए भी छुटकारा नहीं होता ११५ पहन लेने जितना ही महत्त्व समझते हैं । अर्थात् पुरानी देह छूटेगी तो नई मिल जायेगी यही भाव उनके मन में रहता है । भगवद्गीता में कहा भी है वासांसि जीर्णानि यथा विहाय, नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि । तथा शरीराणि विहाय जीर्णा - न्यन्यानि संयाति नवानि देही ॥ अर्थात् - जिस प्रकार मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्यागकर दूसरे नये वस्त्रों को धारण करता है, उसी प्रकार जीवात्मा पुराने शरीरों को त्यागकर दूसरे नये शरीरों को प्राप्त करता है । मृत्यु के प्रति ऐसी निर्भयता होने पर ही ज्ञानी पुरुष उसकी भयंकरता पर विजय प्राप्त कर सकता है तथा काल रूप शत्रु के आक्रमण का मुकाबला करने के लिए ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप एवं समभाव रूपी साधनों के साथ तैयार रहता है । किन्तु जो व्यक्ति अपनी जिन्दगी में परलोक के विषय में नहीं सोचता तथा पापों का अटूट भंडार जमा कर लेता है वह कभी मृत्यु के समय निर्भय नहीं रह सकता । मौत से भय किसको ? एक लघु कथा है कि किसी नरभक्षक ने कुरु देश के राजकुमार सुतसोम को पकड़ लिया और उसे मारने की तैयारी करने लगा । उस समय उसकी आँखों में आँसू आ गये । यह देखकर नरभक्षक अट्टहास करता हुआ बोला - "अरे वाह ! क्षत्रिय का बेटा होकर भी मरने से डर रहा है ?" ये व्यंगात्मक वचन सुनकर राजकुमार ने निडरतापूर्वक कहा - " मैं मृत्यु से कदापि नहीं डरता । मुझे केवल इस बात का दुःख है कि मैंने एक ब्राह्मण को दान देने का वचन दिया था और उसे ही देने जा रहा था, पर तुम्हारे द्वारा पकड़ लिए जाने से मेरा वचन भंग हो जाएगा और ब्राह्मण बेचारा अभावग्रस्त बना रहेगा । इसलिए अगर तुम मुझे कुछ समय के लिए छोड़ दो तो मैं अपने वचनानुसार ब्राह्मण को कुछ द्रव्य दे आऊँ ।” Jain Education International नरभक्षक ने कहा - "मुझे बेवकूफ समझते हो ? एक बार छोड़ देने पर तो फिर तुम्हारी छाया भी मुझे कभी नजर न आएगी ।" For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004010
Book TitleAnand Pravachan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1975
Total Pages418
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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