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________________ १०८ आनन्द प्रवचन : सातवाँ भाग नजराने में आये हैं ? रुकने का नाम ही नहीं लेते। अब जल्दी लौट चलो, मैं परेशान हो गया हूँ ।" मंत्री ने रथ को पुनः राज्य की ओर मोड़ दिया और वहाँ से भी सरपट लाते हुए ठीक राज्य के बगीचे पर घोड़ों को रोकते हुए कहा - "महाराज ! आप बहुत थक गये हैं अतः अपने बगीचे में कुछ समय विश्राम कर लीजिये, तत्पश्चात् हम महल को लौट चलेंगे ।" राजा ने इसे स्वीकार कर लिया और रथ से उतरकर बगीचे में प्रवेश किया । पर वह यह देखकर चौंक पड़ा कि बगीचे में बिलकुल सामने ही कोई साधु ऊँचे आसन पर बैठे हैं तथा उनकी प्रजा के बहुत सारे व्यक्ति सामने बैठे हुए संत के द्वारा दिया गया उपदेश दत्तचित्त होकर सुन रहे हैं । राजा ने तुरन्त मंत्री से पूछा - "ये संत कौन हैं और क्या उपदेश दे रहे हैं ?” चित्त मंत्री मन में बहुत प्रसन्न था । अपने बनाये हुए प्रोग्राम के अनुसार वह राजा को ठीक प्रवचन के समय केशी श्रमण के यहाँ ले आया था । यही वह चाहता था कि राजा संत की प्रवचन सभा के समय ही वहाँ पहुँचे और उनके हृदय में प्रवचन के लिए कौतूहल जागृत हो । हुआ भी वही । राजा ने पूछ लिया- "ये क्या उपदेश दे रहे हैं ।” मंत्री ने मन की प्रसन्नता को मन में ही छिपाते हुए शांतभाव से उत्तर दिया "मैं ठीक तो बता नहीं सकता महाराज, पर सुनते हैं कि ये संत बड़े महान् एवं ज्ञानी होते हैं तथा लोक-परलोक, पुण्य-पाप आदि के विषय में बताते हैं तथा यह भी बताते हैं कि शरीर और आत्मा निश्चय ही भिन्न-भिन्न हैं ।" "ऐसा कभी नहीं हो सकता," महाराज ने कहा । " क्या पता हुज़ूर ? पर ये तो ऐसा ही कहते हैं तथा इसी बात को समझाते हैं ।" यह सुनकर राजा को कौतूहल हुआ कि किस प्रकार ये साधु आत्मा को शरीर से अलग बताते हैं, अतः उन्होंने कहा - "क्या मैं इनसे कुछ प्रश्न पूछ सकता हूँ ?" अंधे को क्या चाहिए ? दो आँखें । मंत्री यही तो चाहता था, अतः तुरन्त बोला - "क्यों नहीं पूछ सकते, महाराज ? अवश्य पधारिये । संत तो प्रत्येक समस्या का समाधान करते ही हैं ।" ऐसा कहकर वह राजा को उपदेश स्थल पर केशी मुनि के समक्ष ले आया । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004010
Book TitleAnand Pravachan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1975
Total Pages418
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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