SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 102
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आध्यात्मिक दशहरा मनाओ ! ८६ तो बंधुओ, राम तो धर्म का अवतार ही थे, अत: उनके सुपुत्र होने में कोई बड़ी बात नहीं थी। पिता के वचन की मर्यादा और उसके पालन किये जाने में सहायक बनकर वे वनगमन के लिए तैयार हो गये । पर जैसा कि मैंने कहा था, धर्म और सत्य एक-दूसरे से अलग नहीं रहते, लक्ष्मण ने भी उनके साथ जाने का निश्चय कर लिया और फिर सुमतिरूपी सीता ही कैसे पीछे रहती ? जहाँ धर्म और सत्य रहेगा, वहाँ सुमति का होना तो अनिवार्य है। अतः धर्म, सत्य एवं सुमति तीनों ही संयमरूपी वन की ओर प्रस्थान कर गये। वन में यत्र-तत्र विचरण करते हुए वे एक स्थान पर पर्णकुटी बनाकर ठहरे । लक्ष्मण का वहाँ मुख्य कार्य अपने भाई एवं भाभी की सेवा और रक्षा करना था, पर एक बार घूमते-घामते वे उस ओर निकल गये जहाँ झाड़ी में कुमति रूपी सूर्पणखा का पुत्र शंबुक तपस्या कर रहा था। संयोग की बात थी कि जिस समय लक्ष्मण वहाँ पहुँचे, उसी समय सूर्यहंस खड्ग शंबुक की तपस्या से सिद्ध होकर आया हुआ पड़ा था। खड्ग वहाँ था पर उसका स्वामी लक्ष्मण को दिखाई नहीं दिया क्योंकि वह घनी झाड़ी में ओंधे मुंह लटका हुआ तपस्या-रत था। तो उस घोर जंगल में खड्ग के स्वामी के न होने से लक्ष्मण ने उत्सुकता एवं कौतुकवश खड्ग का आह्वान किया और मात्र आह्वान पर ही खड्ग उनके हाथ में आ गया । खड्ग की परीक्षा उसकी धार से ही हो सकती है, अतः ज्यों ही खड्ग लक्ष्मण के हाथ में आया, त्यों ही उन्होंने उसकी धार की परीक्षा करने के लिए उसी समीपस्थ झाड़ी पर उसे चला दिया, जिसमें शंबुक तपस्या कर रहा था। खड्ग का चलना था कि झाड़ी तो क्षणमात्र में कटी ही, साथ ही शंबुक का मस्तक भी कट गया। ___ रक्त की धार बह चली और ज्यों ही लक्ष्मण की दृष्टि उस ओर गई वह भौंचक्के होकर झाड़ी की ओर दौड़े। अन्दर झाँककर देखा तो दुःख और आश्चर्य के मारे इस प्रकार जड़वत् खड़े रह गये कि काटो तो खून की एक बूंद भी न निकले । अन्दर एक व्यक्ति उनके खड्ग के प्रहार से कटा हुआ पड़ा था। घोर दुःख, ग्लानि और मारे पश्चात्ताप के वे माथा पकड़कर वहीं बैठ गये। सोचने लगे- "अनजान में ही सही, पर मुझसे कैसा अनर्थ और पाप हो गया। हाय ! अब मैं क्या करूँ ?" बिगड़ी को बनाने का उनके पास कोई उपाय नहीं था। वात यथार्थ भी थी । क्योंकि स्थिति मरणांतक भी होती तो वे कुछ न कुछ प्रयत्न करते पर मरण के पश्चात् क्या किया जा सकता था ? शंबुक का मस्तक एक ओर तथा धड़ दूसरी ओर पड़ा था। बहुत समय पश्चात् कोई भी उपाय न देखकर और मरने वाले की पहचान Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004010
Book TitleAnand Pravachan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1975
Total Pages418
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy