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ब्रह्मलोक का दिव्य द्वार : ब्रह्मचर्य
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और कृष्ण की यह बात सुनकर सचमुच ही दुर्योधन लज्जित हुआ और एक लंगोट शरीर पर रखकर माता के सामने उपस्थित हो गया । पुत्र को आया जानकर गांधारी ने कुछ क्षणों के लिये अपने नेत्रों पर से पट्टी हटाई और उस पर दृष्टिपात किया। दुर्योधन का सम्पूर्ण शरीर बज्र के सदृश दृढ़ हो गया किन्तु लंगोट रहने से शरीर का वह हिस्सा पूर्ववत् कमजोर बना रहा और युद्ध में वहीं शस्त्र लगने से वह मृत्यु को प्राप्त हुआ।
बंधुओ ! इस घटना के द्वारा मैं आपको सती गांधारी की शक्ति के विषय में बता रहा था कि एक काँटा चुभने से भी जिस शरीर में खून निकलने लगता है, वह वज्र के सदृश बन जाय, ऐसी ताकत गांधारी की दृष्टि में कैसे आ गई ? गांधारी ने साधुपना नहीं लिया था और न ही पूर्ण ब्रह्मचर्य व्रत अंगीकार किया था। वह गृहस्थ थी और एकदेशीय ब्रह्मचर्य का पालन करती थी । अपने पति के अलावा न वह किसी अन्य पुरुष का विचार मन में लाती थी और न ही किसी पर दृष्टिपात ही करती थी। केवल एकदेशीय ब्रह्मचर्य का पालन करके ही उसने शरीर को वज्र के समान दृढ़ कर देने की महान् शक्ति हासिल करली थी।
आप विचार कर सकते हैं कि जब एकदेशीय ब्रह्मचर्य में भी इतनी शक्ति है तो फिर सर्वदेशीय अर्थात् पूर्ण ब्रह्मचर्य में तो कितनी शक्ति होगी ? यही कारण है कि साधुपुरुष पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं । श्री दशवकालिक सूत्र में एक गाथा दी गई है :
मूलमेयमहम्मस्स, महादोस समुस्सयं । तम्हा मेहुणसंसग्गं, निग्गंथा वज्जयंति णं ॥
-अध्ययन ६ गा० १७ अर्थात् मैथुन-सेवन अधर्म का मूल है और महान् दोषों को बढ़ाने वाला है, इस लिए निर्ग्रन्थ मुनि उसका त्याग करते हैं।
ब्रह्मचर्य-पालन असाध्य नहीं है : दुःख की बात है कि आर्य संस्कृति में ब्रह्मचर्य पर अत्यधिक जोर देने पर भी आज लोग इस ओर पर्याप्त ध्यान नहीं देते और कहते हैं कि ब्रह्मचर्य का पालन करना असाध्य कार्य है । ऐसा कहने वाले बड़े भ्रम में होते हैं । वे भूल जाते हैं कि हमारे देश में आजन्म ब्रह्मचारी महात्मा भीष्म ने जन्म लिया था, जिनका गौरव आज भी बना हुआ है, इसी प्रकार अनेकानेक बाल ब्रह्मचारी अपने उच्च एवं दिव्य जीवन को सम्पूर्ण कर गये हैं। विजयकुमार और विजयाकुमारी तो एक पर्यंक पर रहकर भी अपने मन को डांवाडोल नहीं होने देते थे। केवली भगवान ने जब अपने ज्ञान से यह जाहिर किया तभी लोगों को उनके महान् त्याग और संयम के विषय में ज्ञात हुआ । अधिक क्या कहें ? आज भी अनेक बालब्रह्मचारी संत-महापुरुष अपने जीवन को उच्च साधना में लगाकर जीवन को सफल बनाने के प्रयत्न में लगे हुए हैं।
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