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आनन्द प्रवचन | छठा भाग
हूँ तो उसे जीवन में उतारने का प्रयत्न करता हूँ। बस यही मेरे अल्प-ज्ञान का रहस्य है।"
राजा उस निरहंकारी विद्वान की सहज सरलता और महान् विद्वत्ता से अत्यन्त प्रभावित हुआ और उसे सदा के लिए अपने राज्य में निवास करने का आग्रह करते हुए दरबार में उच्च स्थान दिया ।
बन्धुओ ! आप चितन के महत्व को समझ गए होंगे । वस्तुतः जिस प्रकार जमीन के अन्दर से उगकर आया हुआ बीज सुदृढ़ वृक्ष को अस्तित्व में लाता है, उसी प्रकार चिन्तन-मनन के द्वारा मथ कर निकाला गया सत्य अथवा यथार्थ ज्ञान जीवन को निर्दोष एवं समुज्ज्वल बनाता है। इसलिए अगर आपको अपने उच्च जीवन का निर्माण करना है और अपने ज्ञान एवं क्रिया का लाभ उठाना है तो आपको अन्दर से तैयार होकर बाहर आना पड़ेगा। बाहर से अन्दर जाने पर जीवन अव्यवस्थित हो जाएगा
और आत्मा अपनी स्वाभाविकता खो बैठेगी। क्योंकि बाहर का विकारमय कचरा अन्दर जाकर आत्मा के ज्ञान एवं गुणों को आच्छादित कर देता है तथा उसे अपने सहज तेज को बाहर नहीं लाने देता। यह सब चिन्तन-मनन से होगा । आप उपदेशश्रवण, शास्त्र-स्वाध्याय आदि जो कुछ भी करें उस पर प्रतिदिन और विशेष तौर पर प्रातः काल ब्राह्म-मुहूर्त में अधिक से अधिक चिन्तन करें तभी आप अपने जीवन को सार्थक बना सकेंगे।
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