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आनन्द प्रवचन | छठा भाग
में रहेंगे शुभा - शुभ कर्म । यहाँ की दौलत, बड़ी-बड़ी पदवियाँ और मालिकी वहाँ कुछ भी काम नहीं आएगी क्योंकि वहाँ पक्षपात नहीं है । परलोक में तो आपके प्रत्येक कर्म का फल ठीक उसी के अनुसार मिलेगा, जरा भी फर्क नहीं होगा । जिस प्रकार दर्पण व्यक्ति की शकल को जैसी होती है ठीक वैसी ही बताता है, एक बाल का भी अन्तर उसमें दिखाई नहीं देता, उसी प्रकार कर्म भी ठीक उनके अनुसार ही फल प्रदान करते हैं, उनकी प्राप्ति में रंचमात्र भी कमी - बेसी नहीं होती ।
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इसलिए नितान्त आवश्यक है कि व्यक्ति अपनी छोटी से छोटी क्रिया भी बड़ी सावधानी पूर्वक करे एवं मन की भावनाओं पर पूर्ण नियंत्रण रखे । क्योंकि पाप केवल शरीर से ही नहीं होता अपितु मन और वचन से भी होता है । कोई व्यक्ति भले ही अपने शरीर से कुछ भी न करे, उसे हिलाए - डुलाए भी नहीं किन्तु अपने वचनों के द्वारा भी वह हत्या के पाप का भागी बन सकता है । और इससे भी बढ़कर तारीफ की बात तो यह है कि शरीर से कुछ भी न करके और जबान से एक शब्द का उच्चारण किये बिना भी व्यक्ति केवल मन की गर्हित भावनाओं से ही किसी महापाप का भागी बन जाता है ।
कहने का अभिप्राय यही है कि कर्म-बन्धन बड़ी बारीकी से दर्पण में पड़ने वाले प्रतिबिंब के समान हो जाता है । अतः आत्मा का हित चाहने वाले प्राणी को केवल शरीर और वाणी के लिए ही नहीं अपितु मन की भावनाओं के प्रति भी बहुत सजग और सावधान रहना चाहिये । अपनी अशुभ भावनाओं को शुभ रूप में परिणत करने और उसके पश्चात् उन्हें विशुद्ध रूप में लाने के लिए मन को त्याग, तपस्या तथा व्रतनियमादि के द्वारा साधने का प्रयत्न करना चाहिए । कहा भी है-—
मन के मते न चालिये, मन के मते अनेक । जो मन पर असवार है, सो साधु कोई एक ॥
दोहे में भी यही कहा है कि आत्म-कल्याण के इच्छुक व्यक्ति को मन के अनुसार क्रियाएँ नहीं करते जाना चाहिए, वरन् अपने मन पर अंकुश रखते हुए उसे अपनी बुद्धि और विवेक के अनुसार चलाना चाहिए। जो ऐसा करता है वह सच्चा साधु होता है और ऐसे सच्चे साधु विरले ही पाये जाते हैं ।
तो बन्धुओ ! सच्चे साधु बहुत कम होते हैं और जो होते हैं, वे अपनी आत्मा के समान ही अन्य प्राणियों की आत्माओं को भी समझते हैं अत: उनको 'दुःख बचाने का प्रयत्न करते हैं । अपने सहज स्वभाव के अनुसार ही वे किसी अन्य को दुखी नहीं देख सकते । इसलिए संतों के उपदेशों को यथार्थ और आत्मोपयोगी मानकर प्रत्येक व्यक्ति को उनके अनुसार अपना जीवन विशुद्ध और क्रियानिष्ठ बनाना चाहिये । इस संसार में हम मनुष्यों को तीन श्रेणियों में बाँट सकते हैं । उत्तम पुरुष होते हैं जो बिना किसी के मार्ग सुझाने पर भी अपनी बुद्धि और विवेक को जगाकर
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