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साधक के कर्तव्य
३२६ कारक नहीं होगा ? अपने धन के प्रति गृद्धता रखने पर तो फिर भी उसका फल तुरन्त न मिलकर अगले जन्मों में मिले किन्तु पराये धन को प्राप्त करने का प्रयत्न तो अधिकतर इसी जन्म में अपना प्रभाव दिखाई देता है । एक उदाहरण से इसे समझा जा सकता है।
पाप सिर पर चढ़कर बोलता है एक व्यक्ति बड़ा गरीब था अतः उसने एक बार बहुत आवश्यकता होने के कारण किसी साहूकार से पांच सौ रुपये उधार लिए और शर्तनामा लिखकर दे दिया । पाँच सौ रुपयों से उसने कुछ धंधा किया और सौभाग्य से उसे दिन प्रतिदिन काफी आमदनी हुई। दो साल में तो उस पूंजी से ही उसकी एक छोटी-सी दुकान चालू हो गई।
पर ज्योंही उसके पास कुछ पैसा आ गया, उसकी नीयत बदल गई और उसने व्यापारी के पाँच सौ रुपये हड़प जाने का इरादा किया। इधर दो वर्ष तक जब वह व्यक्ति साहूकार के रुपये या ब्याज देने नहीं आया तो साहूकार उसके घर पर रुपये माँगने गया।
व्यक्ति का ईमान तो विचलित हो चुका था अतः उसने कहा--"मेरा रुक्का दिखाओ !"
साहूकार ने तुरन्त ही उसका रुक्का निकालकर व्यक्ति को देखने के लिए दे दिया । व्यक्ति ने वह रुक्का हाथ में आते ही तनिक उलटा-पलटा और शीघ्रतापूर्वक फाड़कर टुकड़े-टुकड़े कर दिया।
साहूकार को इस पर बड़ा क्रोध आया । उसने नगर के राजा के पास जाकर इस बात की फरियाद की। राजा ने दोनों व्यक्तियों को बुलाया और रुपयों के बारे में पूछताछ की पर रुपये लेने वाला व्यक्ति साफ बदल गया और उसने कह दिया"मैंने स्वप्न में भी कभी इस साहूकार से रुपये उधार नहीं लिए। अगर लिए होते तो इसके पास मेरा शर्तनामा होता।"
राजा की समझ में नहीं आया कि वह इस मामले में क्या करे । अतः उसने अपने बुद्धिमान मंत्री को यह झगड़ा निपटाने का कार्य सौंप दिया। मंत्री ने उस दिन तो दोनों को घर भेज दिया किन्तु अगले दिन पुनः दरबार में उपस्थित होने का आदेश दिया।
इस बीच मंत्री ने रुपये देने वाले साहूकार को चुपचाप बुलवाया और उससे पूछा-"उस व्यक्ति का लिखा हुआ शर्तनामा कितना लम्बा-चौड़ा था ?" साहकार ने सच बात बता दी। तब मंत्री ने सोच-विचारकर उससे कहा- “कल तुम दरबार में आकर कह देना कि इस व्यक्ति का लिखा हुआ शर्तनामा एक हाथ लम्बा था।"
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