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साधक के कर्तव्य
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इच्छाओं की वृद्धि के कारण ही मानव परिग्रह बढ़ाता है तथा उसके लिए अनेकानेक पाप करता है। इतना ही नहीं, ये इच्छ'एँ अन्य सभी कषायों को निमन्त्रण देकर उसकी आत्मा को नाना कर्मों में जकड़ देती हैं । परिग्रह के विषय में 'श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र में तो यहाँ तक कहा गया है
लोभ-कलि-कसाय-महक्खंधो,
चिता सयनिचयविपुलसालो। नत्थि एरिसो पासो पडिबंधो अस्थि,
सव्व जीवाणं सव्वलोए॥ अर्थात्-परिग्रह रूपी वृक्ष के स्कन्ध यानी तने हैं-लोभ, क्लेश और कषाय। तथा चिन्ता रूपी सैकड़ों सघन एवं विस्तीर्ण उसकी शाखाएँ हैं ।
___ आगे कहा है-इस सम्पूर्ण लोक में परिग्रह के समान प्राणियों के लिए दूसरा और कोई जाल एवं बन्धन नहीं है ।
अभिप्राय यही है कि अधिक इच्छाएँ अधिक परिग्रह बढ़ाने के लिए मनुष्य को प्रेरित करती हैं और इसीलिए इन्हें कम करने के लिए 'परिग्रह-परिमाण व्रत' का विधान किया गया है। गृहस्थ-धर्म का पालन करते हुए संसारी व्यक्तियों को अपने परिग्रह की सीमा तो निर्धारित कर ही लेनी चाहिए और जब गृहस्थ के लिए भी इच्छाओं को कम करने की आवश्यकता है तो फिर जिन संत-मुनियों ने अपना घरबार एवं सम्पूर्ण धन-वैभव त्याग दिया है तो फिर उन्हें इच्छाएँ और कषायादि रखना कहाँ उचित है ? उन्हें तो इच्छाओं का समूल नाश कर देना चाहिये और छद्मस्थ होने के नाते इतना न हो सके तो उन्हें अल्प से अल्प करके साधना-पथ पर बढ़ना चाहिए। अन्यथा आत्मा का उद्धार कदापि सम्भव नहीं है।
वैदिक साहित्य में उल्लेख है कि आद्य शंकराचार्य एक साधारण कुल में उत्पन्न हुए थे, घोर दरिद्रता के बीच में ही किसी तरह उन्होंने अपनी बुद्धि एवं परिश्रम से ज्ञानार्जन किया एवं साधना करना प्रारम्भ कर दिया। चूंकि वे दरिद्रता में पले थे अतः उन्होंने अपनी साधना का लक्ष्य धन को बनाया अर्थात् धन के लिए साधना की । किन्तु इसमें वे सफल नहीं हो पाए और लक्ष्मी ने उन पर कृपा नहीं की। यह देखकर उन्हें उससे घोर विरक्ति हो गई और उन्होंने धन-प्राप्ति की इच्छा का सर्वथा त्याग करके संन्यास ग्रहण कर लिया। पर संन्यासी बनने पर जब उन्होंने आत्म-कल्याण के लिए साधना करना प्रारम्भ किया तो लक्ष्मी भी उनके समक्ष हाजिर हो गई। पर वे लक्ष्मी से विरक्त हो गए थे अतः उन्होंने कह दिया कि अब उन्हें उसकी जरूरत नहीं है ।
___ कहने का आशय यही है कि मनुष्य लक्ष्मी के पीछे जितना अधिक दौड़ता है, वह उतनी ही आगे चली जाती है और उससे मुंह मोड़ लेने पर वह हाथ जोड़कर
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