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चार दुष्कर कार्य की इच्छा रखने वाले मुमुक्षु, पुरुष मन पर काबू कर लेते हैं तथा इन्द्रियों के विषयों को ठोकर मारकर आत्म-साधना में जुट जाते हैं ।
तो बंधुओ, अगर मानव दृढ़ संकल्प कर लेता है तो कोई भी कार्य वह दुष्कर नहीं मानता तथा उसे सफल बनाने में लग जाता है । दृढ़ संकल्प एक ऐसा गढ़ होता है जो कि संसार के प्रबलतम प्रलोभनों से भी मनुष्य को बचा लेता है। हढ़ संकल्प की महिमा का शब्दों में वर्णन नहीं किया जा सकता पर हमारे इतिहास और पुराण सभी साक्षी हैं कि मनुष्य के संकल्प के सन्मुख देव और दानव सभी मस्तक झका देते हैं । संकल्प मन के विकल्पों को निर्मूल कर देता है तथा उसको अपनी इच्छानुसार चलाता है। आराधनासार में कहा गया है
"निग्गहिए मणपसरे, अप्पा परमप्पा हवइ।" मन के विकल्पों को रोक देने पर आत्मा परमात्मा बन जाता है ।
जो सच्चे साधक ऐसा करने में समर्थ हो जाते हैं वे ही संवर मार्ग पर चलते हुए अपने आत्म-कल्याण के लक्ष्य को प्राप्त करते हैं तथा सदा के लिये अजर एवं अमर बन जाते हैं।
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