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________________ चार दुष्कर कार्य ३११ कलावती बड़ी सरल हृदया नारी थी, वह न किसी से द्वेष करती थी और न ही यह कल्पना ही करती थी कि उससे उसकी सौतें ईर्ष्या करती हैं । उसने बड़े प्रेम से अपनी सौत के द्वारा भेजा हुआ आम्रफल स्वीकार किया और खाने के लिए तैयार हुई । किन्तु उसी समय उसे ध्यान आया कि आज हरी सब्जी खाने का मेरा नियम है। इसलिए यह आम कल खा लूंगी, ऐसा विचार कर उसने दीवाल में बने हुए एक आले में रख दिया। तत्पश्चात् वह मनोरंजन के लिए झूले पर बैठ गई और धीरेधीरे झूलने लगी। पर इधर बड़ी रानी लीलावती को चैन कहाँ ? जब काफी देर हो गई और आम ले जाने वाली दासी नहीं लौटी तो उसने दूसरी दासी को कहा-"जाकर छोटी रानी के कुशल समाचार ले आ। उनके दिन भरे हैं, अतः मुझे चिन्ता होती रहती है।" 'दिन भरे' से उसका अर्थ दुहरा था, एक तो गर्भवती होने का, दूसरा दिन पूरे हो गये हैं, यह भी छिपा हुआ भाव था। खैर दासी गई, पर तुरन्त ही लोटकर बोली"महारानी जी ! वे तो झूले पर बैठी हुई झूल रही हैं।" लीलावती बड़ी हैरान हुई और इधर-उधर बेचैनी से टहलने लगी। जब चैन नहीं पड़ा तो उसने तीसरी दासी को फिर भेज दिया । वह दासी जरा स्वादलोलुप थी अतः जब उसने कलावती के महल के आले में रखा हुआ आम देखा तो सोचा"राजाओं के यहाँ फलों की क्या कमी ? इन्हें तो और भी बहुत मिल जाएंगे अत: मैं ही यह आम खा लूं।" यह सोचते हुए उसने चुपचाप आम उठा लिया और सबकी निगाहें बचाकर खा गई । पर कहते हैं न कि 'चोर का मुंह कोठी में रहता है, वह दासी आम खाते ही चुपचाप वहाँ से भागी और महल की सीढ़ियाँ उतरने लगी। किन्तु कालकूट विष ने उसे उतरने नहीं दिया। वह तो तालू में लगते ही असर कर गया और दासी समाप्त हो गई। ____ इधर चौथी दासी जब लीलावती के द्वारा भेजी गई तो उसने उलटे पैरों लौटकर बताया कि रानी कलावती तो आनन्द से झूले पर झूल रही हैं और आपकी दासी मरी पड़ी है । लीलावती दासी के मरने का रहस्य समझ गई और अपनी योजना के निष्फल हो जाने के कारण सिर पकड़ कर बैठ गई। पर कुछ देर बाद जब वह प्रकृतिस्थ हुई तो फिर कुछ सोचा-विचारा और राजा के पास यह समाचार भेज दिया कि - "रानी कलावती बड़ी सती, दयालु एवं धर्मात्मा बनती हैं पर उन्होंने मेरी गरीब दासी को मार डाला।" राजा लोग वैसे ही कान के कच्चे होते हैं, अत: उन्होंने तुरन्त पता करवाया कि बात क्या है ? यद्यपि उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था कि कलावती ऐसा कर सकती है, पर जब वास्तव में ही दासी की लाश उसके महल की सीढ़ियों पर पाई गई तो उन्होंने कलावती से इस विषय में पूछ लिया। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004009
Book TitleAnand Pravachan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1975
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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