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चार दुष्कर कार्य
३०५ तो बंधुओ, विवेकी एवं बुद्धिमान पुरुष का यही कर्तव्य है कि वह जितना भी बन सके सदा दान करता रहे । दान, शील, तप एवं भाव में दान प्रथम और सर्वश्रेष्ठ है। इतना ही नहीं, दान धर्म का प्रवेश-द्वार है। इसमें प्रवेश किये बिना शिवपुर में नहीं पहुँचा जा सकता । जीवन को धर्ममय बनाने के लिए शुभारम्भ दान से ही किया जा सकता है। स्वयं तीर्थंकर भी प्रव्रज्या ग्रहण करने से पहले एक वर्ष तक निरन्तर दान देते हैं । उनका यह कार्य मानव मात्र को प्रेरणा देता है कि धर्म-साधना करनी है तो पहले दान करो। दान करने में गरीबी तनिक भी बाधक नहीं होती । व्यक्ति कितना भी दरिद्र क्यों न हो, अगर वह अपनी स्थिति के अनुसार दो पैसे या दो रोटी भी उत्तम भावना से किसी को देता है तो वह धर्म के क्षेत्र में अपना ऊँचा स्थान बनाती है।
यद्यपि गाथा में कहा गया है कि दरिद्र के लिए दान देना कठिन है । वह केवल इसीलिए कि उसके पास देने को हजारों रुपये, वस्त्र या अन्न नहीं होते । किन्तु भावना तो उत्तमोत्तम हो सकती है ? बस, वह भावना ही दान के लाभ का हेतु बनती है। आप प्राय: यह सुनते और पढ़ते भी हैं
"यादृशी भावना यस्य, सिद्धिर्भवति तादृशी।" इस पद्य में यह नहीं कहा गया है कि जो अधिक दान देता है या अधिक धर्मक्रियाएँ करता है, उसे ही सिद्धि हासिल होती है। अपितु स्पष्ट और सत्य कहा है कि जिसकी जैसी भावना होती है, उसे वैसी ही सिद्धि प्राप्त हो जाया करती है । क्रिया कोई भी क्यों न हो, पर उसके साथ भावना उत्तम होनी आवश्यक है। व्यक्ति चाहे जप करे, तप करे, शील पाले या दान देवे, अगर उसके पीछे भावना शुद्ध नहीं है तो उसके लिए इन शुभ क्रियाओं का कोई फल नहीं होता। दान भी अगर किसी प्रकार की स्वार्थ-भावना से यानी बदले में लाभ की इच्छा से या यश बढ़ाने की दृष्टि से दिया जाय तो लाखों रुपये देने पर भी निष्फल है, और निःस्वार्थ भाव से, दया, करुणा या सहानुभूति की दृष्टि से दिया गया थोड़ा-सा दान भी प्रशंसनीय एवं सुफल प्रदान करने वाला होता है । इसलिए भले ही दरिद्रता के कारण दरिद्र व्यक्ति के लिए इच्छानुसार अधिक दान देना दुष्कर यानी कठिन अवश्य होता है, पर वह दान देने की उत्तम भावनापूर्वक यत्किचित् भी देता है तो अपनी भावना के कारण उत्तम लाभ हासिल कर लेता है।
समर्थ के लिए क्षमा कठिन है गाथा में दरिद्र के लिए दान देना और उसके पश्चात् 'पहु' यानी प्रभु अथवा समर्थ के लिए क्षमा करना कठिन है, ऐसा कहा गया है।
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