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आनम्द प्रवचन | छठा भाग
सागर का सारा जल लेकर, धो डालो यह देह, फिर भी बना रहेगा ज्यों का त्यों अशुद्धि का गेह । न शुचि होगा यह किसी प्रकार, हंस का जीवित कारागार ।
'जल्ल परिषह' का सामना करने के लिए कवि शोभाचन्द्र भारिल्ल ने कितनी सुन्दर प्रेरणा देते हुए कहा है- यह शरीर जोकि आत्मा रूपी हंस के लिए कारागार के समान है, जब तक विद्यमान रहेगा, सदा अशुद्ध ही बना रहेगा । भले ही किसी समुद्र का सम्पूर्ण जल लेकर इसे निरन्तर धोया जाय, पर यह अशुद्धि का घर तो किसी भी प्रकार और कभी भी शुद्ध नहीं होगा ।
जो विचारशील संत इस बात को भली-भाँति समझ लेंगे वे ही इस परिषह का पूर्ण समभाव पूर्वक सहन करते हुए अपने लक्ष्य की प्राप्ति कर सकेंगे ।
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