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क्यों डूबे मझधार ?
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वस्तुतः धर्म में महान् शक्ति निहित है। धर्म के प्रकारों को बताते हुए योगशास्त्र में पाँच प्रकार के यम बताए गये हैं—'अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह पंचयमाः ।'
___इन पांचों यमों का पालन करने पर फिर एक यम का मुकाबला करना कौन-सा कठिन है ? सच्चा साधक तो इनका पालन करने के लिए अपना सर्वस्व और प्राणों का भी त्याग कर देता है, किन्तु इस बलिदान का यानी धर्म के प्रकार, इन पांचों यमों का पालन करने वाले का धर्म भी प्रतिदान देता है और वह है सदा के लिए यमराज के पाश से छुटकारा । इसीलिए धर्म की स्तुति करते हुए कहा भी है
तेरे लिए प्राण तजे जिन्होंने, टूटा उन्हीं का यमराज-पाश । रक्षा सदा जो करता तिहारी, तू भी बचाता उनको दुखों से ।
कहा गया है-“हे धर्म ! जो भव्य प्राणी तेरी रक्षा करता है, तू भी उसे संसार के दुःखों से बचा देता है और तेरे लिए प्राण देने वाले के यमराज-पाश को तो तू सर्वथा नष्ट करता है । आगे भी कहा है
आराधते निर्मल चित्त में जो, पाते वही जीवन लाभ पूरा । जो मूढ़ धी हैं करते विनाश, होता उन्हींका जग में विनाश ।
-पं० शोभाचन्द्र भारिल्ल
पद्य में कितनी सुन्दर बात कही गई है कि जो साधक अपने हृदय को कषायादि की मलिनता से सर्वथा शुद्ध कर लेते हैं और अपने उस निर्मल एवं विशुद्ध चित्त में धर्म को विराजमान करके उसकी आराधना करते हैं वे अपने मानव-जन्म का पूरा लाभ उठा लेते हैं । किन्तु जो मूर्ख एवं अज्ञानी तेरे महत्व को नहीं समझते तथा संसार के नश्वर भोगों में लिप्त रहकर तेरा अस्तित्व मिटा देते हैं, उनका इस संसार के क्षणिक एवं निस्सार सुखों से तो नाता टूटता ही है, परलोक में भी कोई ठिकाना नहीं रहता तथा कुगतियों में भ्रमण करते हुए वे नाना प्रकार के घोर कष्ट पाते हैं। इस प्रकार उनका विनाश हो जाता है और यह असंख्य पुण्यों के संचय से मिला हुआ मनुष्य-जन्म सर्वथा निरर्थक जाता है।
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