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________________ क्यों डूबे मझधार ? कहते हैं कि शेखसादी जो बड़े भारी शायर और विद्वान थे, वे बहुत निर्धन थे । होता भी यही है । हम पढ़ते हैं, सुनते हैं और देखते भी हैं-'पंडिते निर्धनत्वम्' पंडित निर्धन होता है। दूसरे शब्दों में सरस्वती जहाँ निवास करती है वहाँ लक्ष्मी नहीं रहती। दोनों में छत्तीस का आँकड़ा होता है। ऐसा क्यों? इसलिये कि धन व्यक्ति को अहंकारी तथा अविवेकी बनाता है तथा विद्या उसे बुद्धिमान तथा विवेकी बनाती है। लक्ष्मी और सरस्वती के वाहन भी यही भाव प्रकट करते हैं। आप जानते हैं कि लक्ष्मी का वाहन उल्लू माना जाता है, जिसे दिन में कुछ दिखाई नहीं देता। लक्ष्मी भी मनुष्य को इसी प्रकार अन्धा बनाए रखती है, जिसे अपना हिताहित किसमें है, यह नहीं दिखता । अब आता है सरस्वती का वाहन हंस । हंस के लिए कहा जाता है कि वह मोती तो चुनता ही है, साथ ही दूध और जल अर्थात् क्षीर और नीर अगर इकट्ठे हों तो वह क्षीर और नीर अलग कर देता है । विद्वान पुरुष भी जो कुछ पढ़ते हैं, सुनते हैं और अपने अनुभवों से देखते हैं, उनमें से वे गुण ग्रहण करते हैं तथा वे बातें लेते हैं जो उनकी आत्मा को उन्नत बनाती हैं। अपने गुणग्राही स्वभाव एवं विद्वत्ता के बल पर ही विद्वान कीर्ति हासिल करता है तथा सभी जगह पूजनीय बनता है। एक मनोरंजक रूपक है कि किसी व्यक्ति ने लक्ष्मी से पूछा-"तू प्रायः मूखों के पास ही रहती है, क्या पंडितों और विद्वत्जनों से तेरा मत्सर-भाव है ?" इस पर लक्ष्मी ने उत्तर दियापद्म ! मूढजने ददासि द्रविणं . विद्वत्सु किं मत्सरो ? नाहं मत्सरिणी न चापि चपला, नवास्मि मूर्खे रता । मूर्खेभ्यो द्रविणं ददामि नितरां ___ तत्कारणं श्रूयतां । विद्वान् सर्वजनेषु पूजिततनुमूर्खस्य नान्यागतिः ॥ -सुभाषित रत्नभाण्डागार पृष्ठ ६६ लक्ष्मी कहती है—मैं न तो मत्सरिणी हूँ, न चंचल और मूों में अनुरक्त ही हूँ। किन्तु मैं मूों के पास रहती हूँ इसका केवल यही कारण है कि विद्वान तो विद्या के कारण सब लोगों का पूज्य हो जाता है पर मूों को मेरे सिवाय कोई गति नहीं है । अर्थात् उनके पास धन न हो तो उन्हें कौन पूछे ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004009
Book TitleAnand Pravachan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1975
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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