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अलाभो तं न तज्जए
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___ अर्थात्-व्यक्ति को विचार करना चाहिए कि इस संसार में आकर हम केवल कलंक ही अपने माथे पर लेकर जा रहे हैं । खेद है कि जो मनुष्य-जीवन हमें आत्मा को उन्नत बनाने के लिए मिला था, उसके द्वारा हमने आत्मा का और पतन कर लिया है । इस प्रकार क्या करने आये थे और क्या करके जा रहे हैं ?
जो भव्य प्राणी ऐसा सोचते हैं वे गिरकर भी उठ जाते हैं, ठोकर खाकर संभल जाते हैं और वे ही सच्चे इन्सान कहला सकते हैं।
तो बन्धुओ, प्रत्येक साधक को और प्रत्येक व्यक्ति को भली-भांति समझ लेना चाहिए कि यह संसार एक जाल है जो सुख एवं दुःख, लाभ एवं अलाम के तानों-बानों से बुना हुआ है । यहाँ कभी सुख प्राप्त होता है और कभी दुःख, कभी लाभ होता है और कभी अलाभ-परिषह सामने आता है । पर जो इन सभी स्थितियों में समभाव रखता है वही सिद्धि के सोपान पर चढ़ता है।
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