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आनन्द प्रवचन | छठा भाग
केवल धनी होने के कारण ही व्यक्ति को सम्मानित और निर्धन होने के कारण किसी को उपेक्षित नहीं करना चाहिए। दोहे में यही बात बड़ा सुन्दर उदाहरण देकर भी समझाई है कि
__“जहाँ काम आवे सुई, कहा करे तरवारि ।" अर्थात् तलवार बहुत बड़ी होती है और वह सहज ही मनुष्यों का गला काटकर रख देती है किन्तु इतनी तेज धारवाली होने पर भी और आकार में बड़ी होने पर भी क्या कपड़ा सीने के काम आ सकती है ? जरा प्रयत्न कीजिये कभी तलवार से कपड़ा सीने का और फिर देखिये कि कपड़े की क्या दशा होती है ? स्पष्ट है कि उसके द्वारा कपड़ा सिल नहीं सकता और यह काम केवल छोटी सी सुई ही बखूबी करती है। ___इसलिए हमें इस उदाहरण को समझते हुए भली-भाँति जान लेना चाहिए कि संघ में भी केवल श्रीमन्त ही हर जगह काम नहीं आ सकते यानी प्रत्येक कार्य वे सम्पन्न नहीं कर सकते । इसमें तो धनी और निर्धन सभी अपने-अपने स्थान पर उपयोगी और आवश्यक हैं।
अपने भवन का निर्माण करवाते समय आप बड़े-बड़े पत्थर उसमें लगवाते हैं और छत बनाने के लिए लम्बी-लम्बी पट्टियाँ भी उस पर डलवाते हैं, किन्तु क्या छोटीछोटी दरारें या पाचर भरने के लिए भी आप शिलाओं का उपयोग करेंगे ? नहीं, वहाँ तो छोटे-छोटे टुकड़े ही काम आएंगे।
तो बड़े और छोटे सभी अपने-अपने स्थान पर समान महत्त्व रखते हैं अतः उन्हें संगठन में रहना चाहिए । समाज में अगर संगठन न होगा तो कमी की कोई महान कार्य सम्पन्न नहीं होगा और किसी भी महत् उद्देश्य की पूर्ति नहीं हो सकेगी। उलटे सब आपस में एक दूसरे की निन्दा-बुराई करेंगे और एक दूसरे के अवगुण ढूँढ़ते रहेंगे। परिणाम यह होगा कि यहाँ मुश्किल से मिला हुआ यह आपका श्रेष्ठ जन्म और सभी उत्तम साधन निरर्थक चले जायेंगे। गुजराती भाषा के एक कवि ने कहा है
मल्या छे साधनो मोंघा, महा पुण्योंतणा योगे,
छतां सत्कार्य नहिं करतां, कहो क्यारे पछी करशो? कवि ने मानवों को मधुर झिड़की देते हुए कहा है- "अरे नादान भाइयो ! जरा विचार करो कि अनन्त पुण्यों के फलस्वरूप तुम्हें ये उत्तम शरीर, जाति, कुल, क्षेत्र एवं सत्संगति आदि साधन प्राप्त हुए हैं। दूसरे शब्दों में कितने पुण्य खर्च करने पर तुम ये सब प्राप्त कर सके हो। फिर भी इन मँहगे साधनों का तुम कोई
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