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आनन्द प्रवचन | छठा भाग
पूर्व जन्मों में संचित किये हुए अनन्त पुण्यों के फलस्वरूप तो इस बार आप को उत्तम कुल, उत्तम जाति, उत्तम क्षेत्र और सबसे उत्तम मनुष्य जन्म मिल गया है। पर इससे लाभ उठाकर अगर पुनः पुण्य-संचय न किया तो पूर्व-पूंजी समाप्त हो जायगी और फिर अनन्त काल तक संसार - परिभ्रमण करना पड़ेगा ।
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इसीलिए हमारे शास्त्र एवं सन्त-महापुरुष आपको सेवा, परोपकार एवं दानादि शुभ कार्य करने की बार-बार प्रेरणा देते हैं । इन कार्यों से पुण्य संचय होता है । परोपकार के लिए तो भिक्षा माँगने में भी किसी प्रकार की लज्जा नहीं होनी चाहिए । वैसे आपके द्वार पर आया हुआ प्रत्येक भिक्षुक ही आपको मूक शिक्षा देता है । मैंने एक स्थान पर पढ़ा है :
शिक्षयन्ति न याचन्ते, भिक्षाचारा गृहे गृहे । दीयतां दीयतां दानमदातुः फलमीदृशम् ॥
संस्कृत के इस श्लोक के रचयिता का कथन है कि - " प्रत्येक भिक्षुक जो द्वार-द्वार पर घूमता है वह मानो याचना न करता हुआ उलटे गृहस्वामियों को शिक्षा देता है—दान दो ! दान दो !! अन्यथा दान न देने पर मेरे समान ही तुम्हारी भी दशा होगी ।"
वस्तुतः अगर व्यक्ति दानादि शुभ कार्य करके नवीन पुण्यों का संचय न करेगा तो किस प्रकार आगे जाकर उसे उत्तम फल मिलेगा ? पुण्य ही तो वह पूँजी है, जिसे साथ ले जाने पर जीव अगले जन्मों में शुभ फल की प्राप्ति करता है ।
इसलिए बन्धुओ ! आज आपने भी जो दान और परोपकार के अनुष्ठान का प्रारम्भ किया है, वह आपकी आत्मा के लिए अति श्रेयस्कर मार्ग है । आप दान दे सकते हैं तो दीजिये, अगर नहीं दे सकते हैं तो औरों को देने की प्रेरणा कीजिए और अगर दोनों ही शक्य न हों तो देने वालों की सराहना कीजिए । हमारे धर्मग्रन्थ कहते हैं कि प्रत्येक कार्य चाहे वह पापोत्पादक हो या पुण्योत्पादक, तीन प्रकार से किया जाता है । स्वयं करके, औरों से कराके तथा करने वालों का समर्थन करके ।
आप यह न समझें कि कोई पाप अगर आप स्वयं नहीं करते हैं और औरों से करा लेते हैं तो उसके भागी आप नहीं हैं । औरों से कराने पर ही आप उस पाप के भागी अवश्य बनेंगे । और इतना ही नहीं, पाप करने वाले की मात्र सराहना भी आप करेंगे तो भी पाप कर्म का भागी आपको बनना पड़ेगा । क्योंकि कोई भी व्यक्ति अपने कार्य के लिए अगर अन्य व्यक्तियों का समर्थन प्राप्त कर लेता है तो वह निश्चित होकर पुनः पुनः उसे करने लगता है ।
इसी प्रकार शुभ कार्य अथवा पुण्य कार्य का भी हाल है । दान देने वाले व्यक्ति दान देते हैं पर जो नहीं दे पाते हैं वे अन्य व्यक्तियों को प्रेरणा देते हैं और स्वयं
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